☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 294 ☆

? आलेख – व्यंग्य शैली या विधा ? ? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

मुझे गर्व है कि मैने व्यंग्य को शैली से विधा बनते हुए देखा है. हरिशंकर परसाई को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने साहित्य में कबीर के समय से अभिव्यक्ति की एक लोकप्रिय विधा पर इतना गद्य रचा कि साहित्य जगत को व्यंग्य को विधा के रूप में स्वीकार करना पड़ा. मैं अपने स्कूली जीवन से वह सब निरंतर पढ़ता रहा, और इसके प्रभाव से अछूता नहीं रह पाया तथा व्यंग्य लेखन करने लगा.

व्यंग्य को समाज सुधार का अचूक अस्त्र बताते हुए कहा जाता है कि ‘‘व्यंग्य साहित्यिक अजायब घर में लुप्त डॉयनासोर या टैरोडैक्टायल की पीली पुरानी हड्डियों का ढांचा नहीं बल्कि एक जीवंत विधा है जिसे बीसवीं सदी के साहित्य में अहम् भूमिका अदा करनी है. ’’ इसी संदर्भ में वक्रोक्ति संप्रदाय के आचार्य कुंतक ने वक्रोक्ति को काव्य की आत्मा घोषित करते हुए ‘‘वक्रोक्ति जीवितम्’’ ग्रंथ का प्रणयन किया. आचार्य ने वक्रोक्ति को ‘‘वैदग्ध्य भंगी भणिति’’ अर्थात् कवि कर्म-कौशल से उत्पन्न वैचिर्त्यपूर्ण कथन के रूप में स्वीकार किया है, अर्थात् जो काव्य तत्व किसी कथन में लोकोत्तर चमत्कार उत्पन्न करे उसका नाम वक्रोक्ति है. सीधे-सीधे जहां पर वक्ता कुछ कहे और श्रोता लक्षित संदर्भ बिना कहे ही समझ ले, वह वक्रोक्ति होती है. वक्रोक्ति के मुख्य दो प्रकार हैं, प्रथम श्लेष वक्रोक्ति, दूसरी काकु वक्रोक्ति. श्लेष वक्रोक्ति में शब्द प्रवंचना है और काकु में कण्ठ प्रवंचना. इन्हीं तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि व्यंग्य एक ऐसी साहित्यिक विधा है जिसमें समाज में व्याप्त विसंगतियों, कमजोरियों, कथनी-करनी के अंतर एवं समाज में व्याप्त अंधविश्वास व कुरीतियों को कुरेद कर व्यंग्यकार उजागर करता है, तथा इसके लिए जिम्मेवार व्यक्ति का साहसपूर्वक विरोध करता है. सामाजिक संरचना के विकास में निरंतर अवरोधक तत्त्वों का पर्दा गिराता है. वर्तमान संदर्भ व परिस्थितियों में साहित्य में व्यंग्य की नितांत आवश्यकता और बुद्धि चातुर्य व भाषा कौशल के साथ व्यंग्य के  अनुप्रयोग की सार्थकता ही स्वयमेव व्यंग्य शास्त्र है, और जब व्यंग्य का शास्त्र है तो स्पष्ट है कि व्यंग्य शैली नहीं विधा है. आज भी व्यंग्य को शैली कहने की भूल इसलिए की जाती है क्योंकि व्यंग्य विधा इतनी सहज है कि उसके प्रयोग किसी भी विधा के भीतर छोटे छोटे टुकड़ों में रचनाकार करते हैं, जिससे कहानी, लेख, कविता, लघु कथाएं इत्यादि जिसमे भी व्यंग्य का अनुप्रयोग अंतर्निहित हो, वह रचना जीवंत बन जाती है.

अस्तु, व्यंग्य मात्र शैली नहीं एक सुस्थापित प्रभावी पूर्ण विधा है.

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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