श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है एक पूर्णिका – रोशनी की खातिर…। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 225 ☆
☆ एक पूर्णिका – रोशनी की खातिर … ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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मुश्किल राहों पर चलना आ गया
वक्त के सांचे में ढलना आ गया
रोशनी की खातिर जलते रहे हम
मोम सा हमको पिघलना आ गया
सबक दुश्वारियों से सीखा हमने
आज हालातों से लड़ना आ गया
जिनको सदा समझते रहे अपना
क्या हुआ उनको बदलना आ गया
राह के पत्थरों से न रखो दुश्मनी
वजह से उनकी संभलना आ गया
बे- सहूर हवा का सहारा क्या मिला
धूल को माथे पर चढ़ना आ गया
कामयाबी “संतोष” को क्या मिली
दिल में लोगों के खटकना आ गया
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
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