☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 294 ☆
कविता – कम उम्र का आदमी… श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
कल
कचरे के ढेर पर अपनी निकर संभालता,
नाक पोंछता
मुझे मिला एक
कम उम्र का आदमी.
वह, बटोर रहा था पालिथींन की थैलियाँ ,
नहीं,
शायद अपने परिवार के लिये शाम की रोटियाँ
मैं उसे बच्चा नहीं कहूंगा, क्योंकि बच्चे तो आश्रित होते हैं, परिवार पर.
वे चिल्ला चिल्ला कर सवारियाँ नहीं जुटाते,
वे औरों के जूतों पर पालिश नहीं करते,
वे फुग्गे खेलते हैं,
बेचते नहीं।
चाय की गुमटी पर
छोटू बनकर, झूठे गिलास नहीं धोते
और जो यह सब करने पर मजबूर हो,
उन्हें अगर आप बच्चा कहे
तो मुझे दिखायें,
साफ सुथरी यूनीफार्म में उनकी मुस्कराती तस्वीर.
कहाँ है उनकी थोडी सी खरोंच पर चिंता करती माँ,
कहाँ है, उन्हें मेले में घुमाता जिम्मेदार बाप ।
उनके सतरंगे सपने, दिखलाइये मुझे या
कहने दीजीये मुझे
उन्हें कम उम्र का आदमी।
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
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