श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मित्र मेरे मत रूलाओ…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 139 – मित्र मेरे मत रूलाओ… ☆
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मित्र मेरे मत रूलाओ, और रो सकता नहीं हूँ ।
आँख से अब और आँसू, मैं बहा सकता नहीं हूँ ।।
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जिनको अब तक मानते थे, ये हमारे अपने हैं ।
इनके हाथों में हमारे, हर सुनहरे सपने हैं ।।
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स्वराज की खातिर न जाने, कितनों ने जिंदगानी दी ।
गोलियाँ सीने में खाईं, फाँसी चढ़ कुरबानी दी ।।
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कितनी श्रम बूदें बहाकर, निर्माण का सागर बनाया ।
कितनों ने मेघों की खातिर,सूर्य में हर तन तपाया ।।
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धरती की सूखी परत ने, विश्वासों को चौंका दिया ।
कारवाँ वह बादलों का, सरहदों से मुड़ गया ।।
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काँच के दर्पण -से सपने, टूट कर कुछ यों गिरे ।
पैरों में नस्तर चुभाते, खूँ से धरा को रंग गये ।।
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मित्र मेरे मत रुलाओ, और रो सकता नहीं हूँ ।
आँखों से अब और आँसू , मैं बहा सकता नहीं हूँ ।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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