श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तुमसे हारी हर चतुराई…” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 65 ☆ प्रेमचंद की खोज… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
धनपतराय कहाँ हो तुम
प्रेमचंद को खोज रहे क्या?
*
प्रगतिशीलता के दोराहे
असमंजस उपजाते
अँग्रेजी के गुण गाते है
हिन्दी को गरियाते
*
धनपतराय कहाँ हो तुम
कर्मभूमि में खेत रहे क्या ।
*
मान सरोवर कथा-कहानी
ईदगाह का हामिद
रात पूस की किसने काटी
कफ़न ओढ़ता ज़ाहिद
*
धनपतराय कहाँ हो तुम
अलगू-जुम्मन नहीं रहे क्या।
*
फटे हुए जूतों में फ़ोटू
खिचवाते डरते हो
होरी धनिया वाली करुणा
जी भरकर सहते हो
*
धनपतराय कहाँ हो तुम
अब गोदान नहीं लिखते क्या ।
***
© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈