श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”   महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता मछलियों को तैरना सिखला रहे हैं…” ।)

☆ तन्मय साहित्य  #241 ☆

☆ मछलियों को तैरना सिखला रहे हैं… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

आजकल वे सेमिनारों में, हुनर दिखला रहे हैं

मछलियों को कायदे से, तैरना सिखला रहे हैं।

 

अकर्मण्य उछाल भरते मेंढकों से

जम्प कैसे लें इसे सब जान लें

और कछुओं से रहे अंतर्मुखी तो

आहटें खतरों की, तब पहचान ले,

मगरमच्छ नृशंस, लक्षित प्राणियों को मार कर

हर्षित हृदय से निडर हो, जो खा रहे हैं

मछलियों को कायदे से तैरना सिखला रहे हैं।

 

वे सतह पर, अंगवश्त्रों से सुसज्जित

किंतु गहरे में, रहे बिन आवरण है

वे बगूलों से, सफेदी में छिपाए 

कालिखें-कल्मष, कुटेवी आचरण है,

साधनों के बीच में, लेकर हिलोरें झूमते वे

 साधना औ” सादगी के भक्ति गान सुना रहे हैं

मछलियों को कायदे से तैरना सिखला रहे हैं।

 

कर रहे हैं मंत्रणा, मक्कार मिलकर

हवा-पानी पेड़-पौधे, खेत फसलें

हो नियंत्रण में सभी, उनके रहम पर

बेबसी लाचारियों से, ग्रसित नस्लें,

योजनाएँ योजनों है दूर, अंतिम आदमी से

चोर अब आयोजनों में नीति शास्त्र पढ़ा रहे हैं

मछलियों को कायदे से तैरना सिखला रहे हैं।

 

ये करोड़ीमल कथित सेवक

बिना ही बीज के पनपे कहाँ से

दाँव पर है देश की जनता

शकुनि से रोज चलते कुटिल पाँसे,

मिटाने रेखा गरीबी की, अमीरी के सपन

ये कागजी आयोग अंकों से हमें बहला रहे हैं।

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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