श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक शिक्षाप्रद लघुकथा “होली का रंग”। श्रीमती सिद्धेश्वरी जी की यह लघुकथा यह दर्शाने में सफल हो गई है कि गॉंव में अब भी भेदभाव से दूर भाईचारे से रहते हैं। फिर आज समाज में ऐसे कौन से तत्व हैं जो इस प्रेम और स्नेह के बंधन को तोड़ने के लिए आमादा है और आने वाली पीढ़ी के मन में और समाज /गांव की फ़िज़ा में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। सब का कर्तव्य है सब सजग रहें और ऐसे तत्वों से समाज की रक्षा करें। इस अतिसुन्दर शिक्षाप्रद लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 39☆
☆ लघुकथा – होली का रंग☆
छोटा सा गांव। गांव की सुंदरता भी इतनी की सभी परस्पर भाईचारा से रहते। दुख-सुख सभी वहीं गिनती के घरों पर मिलजुलकर होता था। तीज त्यौहार भी इकट्ठे ही मनाया जाता था। गांव में कहीं से समझ नहीं आता की हिंदू कौन और मुस्लिम कौन है? सभी अल्लाह के बंदे और सभी ईश्वर के भक्त थे।
माता के जगराता के समय आरती मुल्ला-काजी भी करते और ईद की सेवइयां हिंदू भी बड़े प्यार से अपने-अपने घरों पर बनाते थे। इसी गांव में दो दोस्त-एक मुस्लिम परिवार से और एक हिंदू परिवार से। अतीक और अमन इतनी दोस्ती की साथ में स्कूल आना-जाना, कपड़े भी एक जैसा ही पहनना। रक्षाबंधन का त्यौहार अमन के यहां से ज्यादा अतीक के घर मिलकर मनाया जाता था।
धीरे-धीरे बड़े होने लगे। शहर की हवा गांव तक पहुंचने लगी। पहले बात और फिर सबकुछ अलग हुआ। फिर मन की सांझा होने वाली बातें शायद मन में गठान बनने लगी। दोनों दोस्त एक-दूसरे को मिलते परंतु पहले जैसे दोस्ती नहीं रही।
अतीक आईआईटी कर रहा था। और अमन अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई दूसरे शहर जाकर कर रहे थे। दूरियां दोनों में बढ़ती गई। एक शहर में रहने के बाद भी दोनों कभी नहीं मिलते थे। दोनों के मन में राजनीति का असर और हिंदू-मुसलमान की भावना पनपने लगी थी। अतीक की दोस्ती कुछ खराब लड़कों के साथ हो गई जोकि सभी प्रकार के कामों में आगे रहते थे। दंगा फसाद, तोड़फोड़ और गुप्त रूप से गांव समाज की बातों को बाहर करने का जिम्मा ले रखे थे।
दोनों शहर से गांव कम आने लगे। आते भी तो अलग-अलग। घर वालों को पता नहीं लग रहा था। और साथ आ भी जाते तो पढ़ाई या कुछ काम है कहकर एक-दूसरे के घर आना जाना नहीं कर रहे थे। उनके घरवाले समझ रहे थे की जिम्मेदारी उठाने के लिए दोनों अब समझदार हो रहे हैं। परंतु अमन की मां को सब समझ में आ गया था। क्योंकि अमन ने एक दिन अतीक के बारे में थोड़ा बहुत बताया था। परंतु मां की ममता- “कुछ मत कहना” कहकर चुप करा दी थी। हमें क्या करना है। दोनों बच्चों की नाराजगी परिवार वाले समझ गए थे। परंतु नई पीढ़ी है सब समय पर ठीक हो जाएगा कह कर सोच रहे थे।
अतीक पूरी तरह बदल चुका था। बार-बार समझाता रहता था कि “दोस्त ये सब अच्छा नहीं है। हम गांव वालों को इन सब बातों पर नहीं पड़ना चाहिए। अपना भाईचारा अलग है। हम सब एक हैं। ” परंतु अतीक हमेशा उससे हट कर, नजर बचाकर चला जाता था। कुछ दिनों बाद होली का त्यौहार आने वाला था। अमन ने कहा” अतीक चल गांव चलते हैं। बहुत साल हो गए गांव की होली खेली नहीं हैं। “अतीक ने कहा “चलो इस साल बिल्कुल पकके रंग की होली खेलेंगे।” अमन उसकी बातों को समझ नहीं पाया।
खुशी-खुशी दोनों गांव आए। रात में सारा गांव खुशियां मना रहा था। सभी ढोल बाजों के साथ नाच गा रहे थे। अमन और अतीक भी शामिल थे। दोनों का शहर से आना सभी गांव वालों को अच्छा भी लग रहा था। भंग का नशा भी चढ़ने लगा। सभी झूम रहे थे। ठीक उसी समय अतीक ने धीरे से तेज धार वाला चाकू निकालकर भीड़ में अमन को वार किया जो किसी को दिखाई नहीं दिया और कहा “ये असली रंग की होली।” अमन ने हंसते हुए चाकू को निकालकर लोगों की नजरों से बचाकर होलिका के बीच में फेंक दिया और जोर से चिल्लाया “मुझे लकड़ी से लग गया।” गांव वाले तुरंत अस्पताल ले गए । चोट गहरी नहीं थी अमन बच गया। आंख खोलने पर देखा अतीक के दाहिने हाथ पर बहुत बड़ी पट्टी बंधी है और आंखों से आंसू निकल रहे हैं। अमन कुछ पूछता इससे पहले गांव के एक आदमी ने बताया कि “जिस लकड़ी से तुम को चोट लगी थी। उस लकड़ी को निकालते समय अतीक का हाथ कट गया।” परंतु बात कुछ और थी। जो दोनों दोस्त जान रहे थे। गांव वाले खुश थे कि दोस्ती का रंग और होली का रंग दोनों गहरा है।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश