श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता सावन की झड़ी

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 189 ☆

☆ # “सावन की झड़ी” # ☆

 “

 

आइये आप की प्रतीक्षा है बड़ी

देखिये लग गई है सावन की झड़ी

 

भीगा भीगा है तन

भीगा भीगा है मन

भीगा भीगा है मौसम

भीगा भीगा है बदन

इंतजार कर रही है

बूंदों की लड़ी

आइये आप की प्रतीक्षा है बड़ी

देखिये लग गई है सावन की झड़ी

 

उफ़! यह कैसा भीगने का डर

बारिश आ रही है रूक रूक कर

आ भी जाओ थोड़ी हिम्मत कर

कहीं बीत ना जाये भीगने का पहर

कब तक यूं ही रहोगी

दरवाजे पर खड़ी

आइये आप की प्रतीक्षा है बड़ी

देखिये लग गई है सावन की झड़ी

 

तू दुपट्टा अपने सर पर डाल

भीगने दे अपने रेशम से बाल

तू तेज़ कर देना अपनी चाल

आरक्त हुए हैं तेरे भीगकर गाल

मदिरा से भरी हुई है

तेरी आंखें बड़ी-बड़ी

आइये आप की प्रतीक्षा है बड़ी

देखिये लग गई है सावन की झड़ी

 

सावन की फुहारों में

भीगती जवानी है

कितना खुशकिस्मत

वर्षा का पानी है

हर एक बूंद की

अपनी कहानी है

साजन से मिलने

आतुर दिवानी है

सावन में मिलन की

कभी बीते ना यह घड़ी

आइये आप की प्रतीक्षा है बड़ी

देखिये लग गई है सावन की झड़ी/

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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