श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 96 ☆ देश-परदेश – अनुशासनहीनता ☆ श्री राकेश कुमार ☆
एक पुराना गीत “सारे नियम तोड़ दो” हमारे देशवासियों का प्रिय गीत हैं। हमारे कर्म भी तो वैसे ही हैं। कोई भी धार्मिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक आदि कार्य में नियमों को तोड़ना हमारी फितरत में हैं। हमारी रगों में बहता खून भी नियम तोड़ कर रक्त दबाव बढ़ता रहता हैं। आप यादि नियम से रहेंगे तो खून भी नियमित होकर बह सकता हैं।
बचपन में घर से दो पेंसिल लेकर जाते बच्चे को मां ये कहती है, कोई दूसरा बच्चा यादि पेंसिल मांगे तो कह देना मेरे पास एक ही है। माता पिता बच्चे के साथ होटल में खाना खा कर आने के बाद घर में आकर कोई और बहाना बना देते हैं। बच्चा भी झूठ बोलने की कला सीख लेता हैं।
युवा बच्चे को बिना लाइसेंस वाहन चलाने के लिए प्रेरित कर यातायात के नियमों की धज्जियां उड़ाना सिखा देते हैं। पिता लाल बत्ती नियम का खुलम खुल्ला उलंघन करते हुए, बचपन में ही बच्चों को नियम तोड़ने की कला में महारत बनने की प्रेरणा दे देता हैं।
यौवन की दहलीज पार करते ही सरकारी कार्यालय में गलत कार्यों के लिए रिश्वत देना/ लेना को जीवन की एक अनौपचारिकता का नाम देकर अपना लिया जाता हैं।
पेरिस ओलंपिक में एक महिला पहलवान सुश्री अंतिम पंगल ने अपनी बहन को नियम विरुद्ध अपने कार्ड से उसको “सिर्फ खिलाड़ियों” के लिए निर्धारित स्थान पर ले जाने का प्रयास किया और पकड़ी गई हैं। उनके निजी सहायक भी नशे की हालत में टैक्सी वाले से वाद विवाद कर चर्चा में हैं।
ओलंपिक नियम के अनुसार तुरंत पेरिस से निष्कासित कर दिया गया हैं। तीन वर्ष का प्रतिबंध भी संभव हैं। इससे पूर्व भी एक अन्य पहलवान सुश्री विनेश पोगट ने भी अपने भाई को उसकी कुश्ती के समय विशेष अनुमति की मांग करी थी।
मांग तो पंजाब के मुख्य मंत्री ने भी की थी, वो पेरिस जायेंगे तो हॉकी टीम का मनोबल बढ़ा सकेंगे। हॉकी टीम में अधिकतर खिलाड़ी पंजाबी भाषा वाले ही हैं, यादि पंजाब के मुख्य मंत्री वहां चले जाते, तो हो सकता है, हॉकी का गोल्ड मेडल हमारी झोली में होता। उन्होंने तो विनेश को भी वज़न कम करने के लिए मूढ़ मुड़वाने की सलाह भी दी हैं। यादि वो पेरिस गए हुए होते तो विनेश को और भी ज्ञानवर्धन कर देते।
अब आप सब भी तो दिन भर व्हाट्स ऐप खोल खोल कर देखते रहते है, कोई समय निर्धारित कर लेवें, इसलिए हम सब भी तो अनुशासनहीन श्रेणी में ही आते हैं। खेलों के मेडल हो या जिंदगी की जंग हो सभी अनुशासन से ही संभव हो सकता हैं।
© श्री राकेश कुमार
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