डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं कविता – लहराता आंचल खुले केश)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 245 – साहित्य निकुंज ☆

☆ कविता – लहराता आंचल खुले केश☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

तुझपर पड़ी नजर मेरी यह देखकर।

भर लूं आगोश में तुम्हें देखकर।

*

तुम तो खोई हो जाने किन ख्याल में।

मासूम  दिखती हो तुम यह देखकर।।

*

तन्हा तन्हा क्यों हो क्या सोचती।

अधर गुलाबी हो रहे क्या सोचकर।।

*

खिल रही अधरोंं पर हसीं मुस्कान।

ख्वाब में मुलाकात उनसे मानकर।।

*

सजना ने की शरारत ये सोच लिया।

अभिसार की हकीकत ये जानकर।।

*

तुम एक ताजा गजल हो मैं मानता।

मैं गाना चाहता हूं तेरा सुर साधकर।।

*

तुम हो हुस्न की मलिका  कमलनयनी।

मैं देखना चाहता हूं एक नजर भरकर।।

*

लहराता आंचल खुले केश बिखरे।

निडरता से सोई हो क्या सोचकर।।

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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