श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “पहली नज़र में समझ लेते थे इज़हार…” ।)
ग़ज़ल # 134 – “पहली नज़र में समझ लेते थे इज़हार,…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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मुहब्बत में जीने के दिन आ गये हैं,
लो मोती पिरोने के दिन आ गये हैं।
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किस्से दूसरों के बहुत सुन चुके हैं,
हमारे फ़साने के दिन आ गये हैं।
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हुज़ूर कुछ दिनों से उखड़े से रहते हैं,
लगता हैं सताने के दिन आ गये हैं।
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जज़्ब कर लेते थे कल तक भीतर ही,
अब अश्क़ बहाने के दिन आ गये हैं।
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पहली नज़र में समझ लेते थे इज़हार,
प्यार अब जताने के दिन आ गये हैं।
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उड़ चुके इश्क़ के कबूतर फड़फड़ा कर,
लो ज़ख़्म सहलाने के दिन आ गये हैं।
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चुराने लगे अब नज़रों से नज़र वो,
लो आतिश लुभाने के दिन आ गये हैं।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈