स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – विश्वास बादल तो नहीं…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 203 – विश्वास बादल तो नहीं…
विश्वास बादल तो नहीं है
जो घिरे, घुमड़े,
शोर से उमड़े,
और बूंदों में बादल
अस्तित्व ही अपना मिटा दे।
विश्वास तो आकाश है,
दीखता है दूर –
आँखों से
मगर, मन के पास है;
किन्तु, उसे मत बांधो
क्षणों के वृत्त में,
बल्कि कुछ ऐसा बनाओ,
जिस किसी को भी दिखाओ –
वह कह उठे – ‘क्या बात है,
सौ-गंधों से भरी सौगात है।“
तो विश्वास को
‘प्रिय’ कि तरह रखो प्राण में –
उसे तुम बीज-सा बोओ,
धैर्य मत खोओ।
अपना समस्त स्नेह
उसे खाद की तरह दो॰
पानी दो नयन का
वह वृक्ष बने।
वट के समकक्ष बने।
फिर उसकी छाँह में बैठो
उठाओ स्वर
और गाओ।
वे और तुम
सब आओ ।
विश्वास को संबल बनाओ।
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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