सुश्री ऋता सिंह
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से … – संस्मरण – भूटान की अद्भुत यात्रा।)
मेरी डायरी के पन्ने से # 23 – भूटान की अद्भुत यात्रा – भाग – 6
(30 मार्च 2024)
सुबह भर पेट नाश्ता कर हम फुन्टोशोलिंग के लिए रवाना हुए। मौसम बहुत अच्छा था। रास्ते में पेमा हमारे प्रश्नों का उत्तर देता रहा और भूटान की अन्य जानकारी भी। शिक्षकों की आदत होती है सवाल पूछने की और हमारे सवालों का उत्तर देने के लिए तत्पर था पेमा।
भूटान भारत के बीच का संबंध बहुत पुराना और अच्छा रहा है। हम जब थिम्फू होते हुए गुज़र रहे थे तो हमें एक विशाल अस्पताल दिखाया गया। हाल ही में जब मोदी जी भूटान आए थे तो बच्चों के लिए इस उत्तम अस्पताल का उद्घाटन अपने हाथों से करके गए थे।
इस अस्पताल का एक हिस्सा 2019 में बनाया गया और दूसरा हिस्सा 2023 में पूरा हुआ। यह सारी व्यवस्था भारत के एक्सटर्नल मिनिस्ट्री द्वारा की गई। यह भारत की ओर से सहायता थी।
पेमा ने बताया कि इससे पहले भी भारत ने बड़ी मात्रा में भूटान को औषधीय सहायता प्रदान की है और यह मोदी जी के कार्यकाल से ही अधिक बढ़ा है। मन प्रसन्न हुआ कि मेरा देश पड़ोसी देशों के लिए भी फिक्रमंद है।
भारत से कई वस्तुओं का भूटान में व्यापार होता है। खासकर रोज़ाना लगनेवाली वस्तुएँ जैसे नमक, हल्दी, चायपत्ती, शक्कर गुड़ तथा अन्य भोजन सामग्री। मछली भी बड़ी मात्रा में भेजी जाती है। दवाइयाँ सब यहीं से जाती हैं।
पेमा ने हमें अपना राष्ट्रगान सुनाया और कुछ फिल्मी गीत भी सुनाए। उसका स्वर भी बहुत मधुर है। सात दिन हम साथ घूमते- फिरते परिवार जैसे हो गए।
थिम्फू से उतरते समय पहाड़ी पर हमने मिट्टी से बनी छोटी -छोटी हाँडीनुमा आकृतियाँ देखीं जो ऊपर के हिस्से में पिरामिड जैसी बनी हुई थीं। बड़ी संख्या में पहाड़ों के निचले हिस्से में ये हँडियाँ रखी हुई दिखीं। पूछने पर पेमा ने बताया कि प्रत्येक हाँडी में मंत्र लिखे हुए हैं। किसी के घर में कोई बीमार हो या शैयाग्रस्त हो या मरणासन्न हो या मृत हो ऐसे समय पर घर से दूर वीरान स्थान पर ये हँडियाँ रखी जाती हैं। मृत आत्मा की शांति की प्रार्थना उसमें डाली जाती है। बीमार लोगों को रोगमुक्त करने की प्रार्थना लिखी रहती है। इन हाँडियों को थथा कहा जाता है।
लोगों का विश्वास है कि प्रकृति ही सबकी देखभाल करती है। प्रकृति की ही गोद में जब प्रार्थनाओं से पूरित हँडियाँ सील करके रखी जाती हैं तो प्रकृति सबका ध्यान रखती है। प्रणाम है ऐसी आस्था को जो प्रकृति के प्रति इतनी समर्पित है। महान हैं वे लोग जो सच में प्रकृति को जीवित मानते हैं। उसकी शक्ति को पहचानते हैं और उसमें विश्वास रखते हैं। प्रकृति भूटानियों के प्रतिदिन के जीवन में अत्यंत घनिष्ठता से जुड़ी हुई है और शायद इसीलिए यहाँ असंख्य वृक्ष स्वच्छंद से श्वास लेते हैं।
थिप्फू दस हज़ार फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह पहाड़ी इलाका है। यहाँ लाल रंग के खिले हुए खूब सारे वृक्ष दिखाई दिए। छोटे -बड़े वृक्ष लाल फूलों से लदे हुए हैं। इन्हें रोडोड्रॉनड्रॉन कहा जाता है। ये फूल दस हज़ार फीट की ऊँचाई पर ही खिलते हैं। अब हम धीरे -धीरे नीचे उतरने लगे। फिर लौटकर गा मे गा नामक होटल में लौटकर आए। एक रात यहाँ रुककर हम अगले दिन 31 तारीख को सुबह बागडोगरा के लिए रवाना हुए। 30 तारीख शाम को ही हमें भूटान के इमीग्रेशन ऑफिस जाकर अपने पेपर जमा करने पड़े। पेमा और साँगे का साथ यहीं तक था।
हम सुखद स्मृतियों के साथ, पड़ोसी देश की अद्भुत जानकारियों के साथ अपने घर लौट आए।
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