श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से मिलना   जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। प्रस्तुत है एक विचारणीय आलेख  “जीवन यात्रा“ की अगली कड़ी

☆ कथा-कहानी # 115 –  कड़कनाथ ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव ☆

करुणाकर नाथ एक बैंक के उच्च पदासीन अधिकारी थे, अपने पद की गरिमा और शक्ति से पूरी तरह परिचित. उनको मालुम था कि उनकी नजरें टेढी होना मतलब सामने वाले का बंटाधार होना है. करुणा सिर्फ उनके नाम का हिस्सा भर थी, करुणा से उनका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था. इसलिये ही उनके अधीनस्थ अफसर उनको कड़कनाथ कहते थे.

कड़कनाथ इसलिये भी कि जिससे वो नाराज हो जायें उसका स्थानांतरण वहीं होना सुनिश्चित होता था जहां कड़कनाथ नामक मुर्गे की प्रजाति पाई जाती है, याने बस्तर, मंदसौर और झाबुआ. उनके काटे का कोई इलाज नहीं था याने अगर वो किसी अफसर को इन तीनों में से किसी जगह भेजने का निश्चय कर लें तो फिर अपने कमिटमेंट के विरुद्ध वो अपने आप की भी नहीं सुनते थे. सामने वाले की पीड़ा उन्हें बहुत आनंद देती थी और वो फरियादी की हर इल्तिजा को अपनी अपार तर्कशक्ति से चूर चूर कर देते थे. उनका यह मानना था कि उन जैसे उच्चाधिकारियों के दंड भोगकर ही ये नये नवेड़े बगावती तेवर वाले अफसर न केवल सुधरते हैं बल्कि हर तरह के माहौल में इन अफसरों के ढल जाने से उनकी कार्यकुशलता और सहनशीलता में वृद्धि होती है जो अंतत: बैंक को ही फायदा पहुंचाती है. आखिर वो अकेले अपने दम पर कब तक बैंक की भलाई के बारे में सोचते रहेंगे. उनकी इसी अदा पर उनके बॉस और यूनियन के नेता भी नाखुश रहा करते थे पर अपनी संतुलन बिठाने की जन्मजात प्रतिभा के बल पर वो दोनों को ही किसी न किसी तरह से मना ही लेते थे.

इसी बैंक में एक और भी आयु में वरिष्ठ पर पद में बहुत ही ज्यादा कनिष्ठ अफसर थे: रामभरोसे पंचवेदी जो पांचवें वेद के सिद्ध हस्त और प्रवीण जानकार थे. वैसे तो वेद चार ही होते हैं पर ये जो पांचवा वेद है इसका अध्ययन सेवाकाल में बहुत उपयोगी सिद्ध होता है और इसके लिखे जाने का प्रयोजन भी यही था. तो रामभरोसे साहब को सिर्फ दो लोगों पर भरोसा था, पहले तो राम पर और दूसरा खुद पर, मज़ाल है कि सामने वाला उनकी बातों के जाल में न फंसे और वो जो ठान कर आये हैं, उस काम को मना कर दे. डिफीकल्ट सेंटर और रूरल पोस्टिंग जैसे शब्द बैंक के गढ़े हुये थे, बैंक की नीतियाँ थीं पर उनकी एक ही नीति थी आराम, इसलिए लोग उनको भी “आराम भरोसे” कहते थे.

वैसे तो कड़कनाथ जी और रामभरोसे जी में कोई तुलना नहीं की जा सकती याने कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली, पर किस्मत ने एक बार दोनों का आमना सामना करा ही दिया. रामभरोसे जी का ट्रांसफर कड़कनाथ मुर्गे वाले एरिया याने बस्तर में हो गया. अब आमना सामना बस्तर नहीं जाने की जिद पकड़ कर बैठे चींटीनुमा अफसर और “ये जायेगा कैसे नहीं” की आन पकड़ कर अकड़े करुणाकर नाथ जी में था.

इस मुलाकात के पहले, प्रयासों का एक सेमीफाइनल भी हुआ था जिसमें हारकर राम भरोसे फाइनल में कड़कनाथ साहब से चैलेंज राउंड खेलने पहुंचे थे.

इस सेमीफाइनल और फाइनल राउंड की दास्तान बखान करना बाकी है.

सेमीफाइनल याने यूनियन का ऑफिस, तो जब रामभरोसे जी बैंक पहुंचे तो भूल गये कि यूनियन का ऑफिस कहां है. यूनियन ऑफिस आने की कभी जहमत उठाते नहीं थे और जब जब भी हड़ताल पर प्रदर्शन होते थे तो उसी वक्त इनके जरूरी काम निकल आते थे, तबियत नासाज़ हो जाती थी. खैर बड़ी मुश्किल से पूछते पाछते पहुंचे तो महासचिव कहीं मीटिंग में जाने वाले थे. पर इनको देखा तो उनको याद आ गया चुनाव के दौरान इनकी ब्रांच में भ्रमण के दौरान इनका बोला हुआ डॉयलाग कि “राम पर भरोसा रखिये, अगर वो आपको जिताना चाहेंगे तो हम वोट दें या न दें कोई फर्क नहीं पड़ता”. आज राम जी ने ही इस ऊंट को पहाड़ के नीचे भेजा है. मुस्कुराते हुये पूछ ही लिया “सर जी यूनियन ऑफिस ढूंढने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई, चाय लेंगे क्या” रामभरोसे जी समझकर भी अनजान बन गये और फरियादी का स्वांग रचते हुये बस्तर नहीं जाने के लिये ऐड़ियां रगड़नी शुरु कर दी.

महासचिव भी इनके कांइयापन से वाकिफ थे तो बोल दिया कि आखिर कोई न कोई तो जायगा ही और जो भी जायेगा वो तो यूनियन का मैंबर ही होगा. तो बहुत तो बच लिये आप, इस बार चले जाइये क्योंकि कड़कनाथ साहब आजकल हम लोगों की भी बहुत सी बातें टाल जाते हैं. आपके लिये हम प्रयास जरूर करेंगे पर अगर रामजी चाहेंगे तो आपका ट्रांसफर कैंसिल हो जायेगा क्योंकि ये गुरुमंत्र तो आपने ही हमको चुनाव के समय आपकी ब्रांच में दिया था. अब मुझे एक मीटिंग में जाना है तो मैं निकल रहा हूँ पर आप चाय पीकर जरूर जाना क्योंकि जो भी इस ऑफिस में पहली बार आता है, हम उनका स्वागत चाय से जरूर करते हैं.

सेमिफाइनल में हारने के बाद रामभरोसे जी फाईनल राउंड में पहुंच गये जहाँ उनका मुकाबला कड़कनाथ साहब से होना था. कड़कनाथ साहब पर काम का बोझ उस दिन बहुत कम था और वो भी शायद इनके आने का पूर्वानुमान लगाकर इंतज़ार में बैठे थे. जैसे ही स्लिप अंदर भेजी, बुलावा आ गया क्योंकि चूहे बिल्ली का खेल खेलना कड़कनाथ साहब का शौक था. बातचीत और फरियाद का दौर इस तरह हुआ.

कड़कनाथ : यस मि. रामभरोसे, वाट्स द प्राब्लम

रामभरोसे : सर प्लीज मेरा बस्तर ट्रांसफर कैंसिल कर दीजिये, इस उम्र में भोपाल से बस्तर, हुजूर रहम कीजिये.

कड़कनाथ : किसी न किसी को तो जाना पड़ेगा, आप क्यों नहीं Transfer is a policy, not your choice.

रामभरोसे : सर मेरे पेरेंट्स बहुत ओल्ड और बीमार हैं, इसलिए आप से रहम की उम्मीद लेकर आया हूँ

कड़कनाथ : जहां तक मुझे मालुम है, आपके पेरेंट्स गांव में रहते हैं, तंदुरूस्त किसान हैं, खेती का सुपरविजन करते हैं

रामभरोसे : सर आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, मैं तो धन्य हो गया कि आप जैसे इतने बड़े अफसर हमारे जैसों के बारे में इतना कुछ जानते हैं. दरअसल अगर वो लोग हफ्ते पंद्रह दिन में मुझसे बात न करें तो बैचेनी हो जाते हैं, उनकी तबियत खराब हो जाती है

कड़कनाथ : अरे भाई इस जमाने में वीडियो कॉल की सुविधा हर जगह है, रोज बात करना पर बैंक टाईम के बाद

रामभरोसे : सर मैं खुद भी बीमार रहता हूँ, डायबिटीज, ब्लडप्रेशर का शिकार हूँ, परेशान हो जाउंगा.

कड़कनाथ : तब तो आपको बस्तर जरूर जाना चाहिए, वहाँ की शुद्ध हवा प्रकृति का साथ और योग आपको स्वस्थ बनाने में बहुत मददगार रहेगा.

रामभरोसे अगले प्वाइंट पर आने वाले थे कि कड़कनाथ जी ने टोक दिया “मुझे मालुम है तुम्हारी बेटी की शादी का कार्ड मेरे पास पिछले साल आया था पर हम लोग नहीं आ पाये. बेटा तो तुम्हारा बंगलौर में जॉब कर रहा है न,  am I right?

कड़कनाथ साहब के चेहरे पर फाइनल जीतने की मुस्कान नज़र आने लगी थी.

पर तभी रामभरोसे जी ने अपना आखिरी अस्त्र फेंका : सर कम से कम एक साल रोक लीजिये, अगले साल मैं खुद आगे बढ़कर बस्तर क्या जहाँ आप भेजेंगे, चला जाउंगा.

कड़कनाथ : एक साल क्यों?

रामभरोसे : सर, वाईफ भी लेडीज़ क्लब की मेंबर हैं और किटी पार्टी अभी एक साल से पहले पूरी नहीं होगी. मैडम (Mrs. K. Nath) के नाम पर तो पिछले महीने ही ओपन हुई है.

कड़कनाथ जी कड़क होने के बावजूद इस तरह जोर से हंसे कि आवाज़ उनके सचिवालय तक पहुंच गई जो शायद उन लोगों ने भी पहली बार सुनी.

कड़कनाथ : यार नहीं जाने का ये कारण मैं पहली बार सुन रहा हूँ और कुछ भी हो तुम्हारी हिम्मत की दाद देता हूं. यहां तो अच्छे अच्छे, यस सर यस सर के आगे नहीं बढ़ पाते हैं और मेरी डांट खाकर चुपचाप निकल जाते हैं. पर खुश होने की जरूरत बिल्कुल नहीं है, बस्तर तो तुमको जाना पड़ेगा, तुम भी जाओगे और तुम्हारी परछाई भी.

तभी अचानक कड़कनाथ साहब का मोबाइल बजा, स्क्रीन पर होम डिसप्ले हो रहा था. मिसेज नाथ से बात करते करते ही उन्होंने रामभरोसे जी को बड़े ध्यान से देखा. फिर मोबाइल ऑफ कर के रामभरोसे जी से मुखातिब हुये और पूछा” तुम्हारी वाईफ का नाम सीता है क्या?

रामभरोसे : Yes sir, Sita is my Wife.

कड़कनाथ : तो मिस्टर रामभरोसे, समझ लो कि आपकी सीता ने आपका वनवास एक साल के लिये टाल दिया है पर ये बात किसी से कहना नहीं वरना़…

रामभरोसे जी इस बात को गुप्त रखने की शपथ खाकर खुशी खुशी बाहर आ गये और ये कहानी भी यहीं पर खत्म हुई.

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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