श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 298 ☆

? आलेख – दुनियां एक रंगमंच? श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

ये दुनिया एक रंगमंच है. हम सब छोटे बड़े कलाकार और परमात्मा शायद हम सबका निर्देशक है जिसके इशारो पर हम उठते गिरते परदे और प्रकाश व ध्वनि के तेज कम होते नियंत्रण के साथ अपने अपने चरित्र को जी रहे हैं. जो कलाकार जितनी गम्भीरता से अपना किरदार निभाता है, दुनिया उसे उतने लम्बे समय तक याद रखती है.

एक लेखक की दृष्टि से सोचें तो अपनी भावनाओ को अभिव्यक्त करने की अनेक विधाओ में से नाटक  एक श्रेष्ठ विधा है. कविता न्यूनतम शब्दो में अधिकतम कथ्य व्यक्त कर देती है, किन्तु संप्रेषण तब पूर्ण होता है जब पाठक के हृदय पटल पर कविता वे दृश्य रच सकें जिन्हें कवि व्यक्त करना चाहता है. वहीं नाटक चूंकि स्वयं ही दृश्य विधा है अतः लेखक का कार्य सरल हो जाता है, फिर लेखक की अभिव्यक्ति को निर्देशक तथा नाटक के पात्रो का साथ भी मिल जाता है. किन्तु आज फिल्म और मनोरंजन के अन्य अनेक आधुनिक संसाधनो के बीच विशेष रूप से हिन्दी में नाटक कम ही लिखे जा रहे हैं. एकांकी, प्रहसन, जैसी नाट्य विधायें लोकप्रिय हुई हें. इधर रेडियो रूपक की एक नई विधा विकसित हुई है जिसमें केवल आवाज के उतार चढ़ाव से अभिनय किया जाता है. नुक्कड़ नाटक भी नाटको की एक अति लोकप्रिय विधा है. प्रदर्शन स्थल के रूप में किसी सार्वजनिक स्थल पर एक घेरा, दर्शकों और अभिनेताओं का अंतरंग संबंध और सीधे-सीधे दर्शकों की रोज़मर्रा की जिंद़गी से जुड़े कथानकों, घटनाओं और नाटकों का मंचन, यह नुक्कड़ नाटको की विशेषता है.

हिन्दी सिनेमा में अमोल पालेकर, फारूख शेख, शबाना आजमी जैसे अनेक कलाकार मूलतः नाट्य कलाकार ही रहे हैं. किन्तु नाट्य प्रस्तुतियो के लिये सुविधा संपन्न मंचो की कमी, नाटक से जुड़े कलाकारो को पर्याप्त आर्थिक सुविधायें न मिलना आदि अनेकानेक कारणो से देश में सामान्य रूप से हिन्दी नाटक आज दर्शको की कमी से जूझ रहा है. लेकिन मैं फिर भी बहुत आशान्वित हूं, क्योकि सब जगह हालात एक से नही है. जबलपुर में ही तरंग जैसा प्रेक्षागृह, विवेचना आदि नाट्य संस्थाओ के समारोह, भोपाल  में रविन्द्र भवन, भारत भवन आदि दर्शको से खचाखच भरे रहते है.

मराठी और बंगाली परिवेश में तो रंगमंच सिनेमा की तरह लोकप्रिय हैं.

सच कहूं तो नाटक के लिये एक वातावरण बनाने की जरूरत होती है, यह वातावरण बनाना  हमारा ही काम  है. नाटक अभिजात्य वर्ग में अति लोकप्रिय विधा है. सरकारें नाट्य संस्थाओ को अनुदान दे रहीं हैं. हर शहर में नाटक से जुड़े, उसमें रुचि रखने वाले लोगो ने  संस्थायें या इप्टा अर्थात इंडियन पीपुल थियेटर एसोशियेशन जैसी १९४३ में स्थापित राष्ट्रीय संस्थाओ की क्षेत्रीय इकाइयां स्थापित की हुई हैं. और नाट्य विधा पर काम चल रहा है. वर्कशाप के माध्यम से नये बच्चो को अभिनय के प्रति प्रेरित किया जा रहा है. पश्चिम बंगाल व  महाराष्ट्र में अनेक निजी व संस्थागत नाट्य गृह संचालित हैं, दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, भोपाल में भारत भवन आदि सक्रिय संस्थाये इस दिशा में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रही हैं. नाटक के विभिन्न पहलुओ पर पाठ्यक्रम भी संचालित किये जा रहे हैं.

जरूरत है कि नाटक लेखन को और प्रोत्साहित किया जावे क्योकि आज भी जब कोई थियेटर ग्रुप कोई प्ले करना चाहता है तो उन्ही पुराने नाटको को बार बार मंचित करना पड़ता है. नाटक लेखन पर कार्यशालाओ के आयोजन किये जाने चाहिये, मेरे पास कई शालाओ के शिक्षको के फोन आते हैं कि वे विशेष अवसरो पर नाटक करवाना चाहते हैं पर  उस विषय का कोई नाटक नही मिल रहा है, वे मुझसे नाटक लिखने का आग्रह करते हैं, मैं बताऊ मेरे अनेक नाटक ऐसी ही मांग पर लिखे गये हैं. मेरे नाटक पर इंटरनेट के माध्यम से ही संपर्क करके कुछ छात्रो ने फिल्मांकन भी किया है. संभावनायें अनंत हैं. आगरा में हुये  एक प्रयोग का उल्लेख जरूरी है, यहां १७ करोड़ के निवेश से अशोक ओसवाल ग्रुप ने एक भव्य नाट्यशाला का निर्माण किया है, जहां पर “मोहब्बत दि ताज” नामक नाटक का हिन्दी व अंग्रेजी भाषा में भव्य शो प्रति दिन वर्षो से जारी है, जो पर्यटको को लुभा रहा है. अर्थात नाटको के विकास के लिये  सब कुछ सरकार पर ही नही छोड़ना चाहिये समाज सामने आवे तो नाटक न केवल स्वयं संपन्न विधा बन सकता है वरन वह लोगो के मनोरंजन, आजीविका और धनोपार्जन का साधन भी बन सकता है.

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023

मोब 7000375798, ईमेल [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments