सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम ग़ज़ल – ख़ुदा ख़ैर करे… ।
रचना संसार # 18 – ग़ज़ल – ख़ुदा ख़ैर करे… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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उनकी नज़रें बनीं तलवार ख़ुदा ख़ैर करे
हुस्न के हो गये बीमार ख़ुदा ख़ैर करे
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लोग चेहरे पे लगा लेते हैं चेहरा ही नया
झूठ का गर्म है बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे
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क़ैद हैं कब से क़फ़स में तेरी उल्फ़त के सनम
अब तो मरने के हैं आसार ख़ुदा ख़ैर करे
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अद्ल-ओ -इंसाफ़ की हमसे न करे बात कोई
बिकते सच के भी हैं दरबार ख़ुदा ख़ैर करे
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ख़ुद-ग़रज़ होके किये ज़ुल्म भी क़ुदरत पे बहुत
वक़्त की पड़ने लगी मार ख़ुदा ख़ैर करे
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हर तरफ देख बिछीं लाशें ही लाशें मौला
जीना अब हो गया दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे
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ग़ैर होते, तो नहीं रंज जफ़ा का होता
सारे अपने हैं गुनहगार ख़ुदा ख़ैर करे
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शे’र कहने का सलीक़ा भी नहीं है जिनको
लब पे उनके भी हैं अशआर ख़ुदा ख़ैर करे
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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