श्री एस के कपूर “श्री हंस”

 

☆ “श्री हंस” साहित्य # 127 ☆

हाइकु ☆ ।।नारी… मेरा क्या कसूर।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

आजाद कली

मानवता   क्षरण

वो गई छली।

[2]

वस्तु भोग की

मानसिकता   बनी

आज लोगों की।

[3]

नारी सम्मान

सदा से ही जरूरी

देना ये मान।

[4]

आज मानव

प्रभु क्या हो रहा

बना दानव।

[5]

रावण आज

रावण जिंदा अभी

दुष्कर्म काज।

[6]

नारी अस्मिता

लाज का मोल भूले

यह दुष्टता।

[7]

काम पिपासा

हैवान बना व्यक्ति

मरी है आशा।

[8]

रचनाकार

नारी सृष्टि रचे है

करो स्वीकार।

[9]

ये व्यभिचार

मां पत्नी बेटी देखो

करो विचार।

[10]

नारी बोलती

मेरा   क्या    कसूर

क्यों मैं झेलती।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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