डॉ कुंदन सिंह परिहार
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम व्यंग्य नाटिका – ‘मलदारों के दुःख‘। इस अतिसुन्दर रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार # 255 ☆
☆ व्यंग्य ☆ मालदारों का दु:ख ☆
देश के मालदारों के बीच कुछ दिनों से इस मामले को लेकर सुगबुगाहट थी। जब भी कहीं मालदारों का जमावड़ा होता, वह बात उछल कर सामने आ जाती। मुद्दा यह था कि देश के मालदार शिद्दत से यह महसूस कर रहे थे कि वे अपना माल इकट्ठा करने के चक्कर में ज़िन्दगी भर जिल्लतें झेलते हैं, ई.डी., सी. बी. आई., इनकम टैक्स के छापों का सामना करते हैं, सांप की तरह अपनी संपत्ति की रक्षा करते हैं, लेकिन एक दिन सबको सिकन्दर की तरह हाथ पसारे दुनिया से रुखसत होना पड़ता है। अरबों की संपत्ति में से एक धेला भी साथ नहीं जाता। ऊपर वाले की भी ऐसी नाइंसाफी है कि बिना कोई नोटिस दिये आदमी को अचानक पलक झपकते उठा लिया जाता है।
जमावड़ों में यह बात भी सामने आयी कि अक्सर मालदार के स्वर्गवासी या नरकवासी होने के बाद उसकी सन्तानें बाप की संपत्ति को विलासिता में उड़ा देती हैं या खुर्द-बुर्द कर देती हैं, जिससे निश्चय ही मरहूम की आत्मा को घोर कष्ट का अनुभव होता होगा।
नतीजतन एक जमावड़े में यह निर्णय लिया गया कि सरकार से दरख्वास्त की जाए कि नई टेक्नोलॉजी का उपयोग करके ऐसा इन्तज़ाम करे कि मालदारों की मौत के बाद उनकी संपत्ति उनकी इच्छानुसार स्वर्ग या नरक ट्रांसफर की जा सके। कहा गया कि लगता है अभी तक सरकार ने स्वर्ग और नरक को खोजने की कोई ईमानदार कोशिश नहीं की। जब वैज्ञानिक चांद और दूसरे ग्रहों तक पहुंच सकते हैं तो स्वर्ग और नरक का पता क्यों नहीं लगा सकते? हर धर्म की किताबें स्वर्ग और नरक के बयानों से पटी हैं। बताया जाता है कि नरक में आत्मा को उबाला या गोदा जाता है और स्वर्ग में उसकी खिदमत के लिए सुन्दरियां या हूरें उपलब्ध रहती हैं। वैसे हमारे अज़ीम शायर ‘दाग़’ देहलवी इस बाबत फरमा गये हैं— ‘जिसमें लाखों बरस की हूरें हों, ऐसी जन्नत का क्या करे कोई?’ फिर भी बहुत से लोग इन हूरों से मुलाकात की उम्मीद में उम्र भर ऊपर की तरफ टकटकी लगाये रहते हैं। यह समझना मुश्किल है कि शरीर-विहीन आत्मा को कैसे उबाला और गोदा जाता है। कोई ‘वहां’ से लौट कर आता भी नहीं है कि कुछ पुख्ता जानकारी मिले। बता दें कि भगवद्गीता ने आत्मा को अदाह्य, अक्लेद्य और अशोष्य कहा है।
ऐसा लगता है कि ऊपर कोई सुपर कंप्यूटर है जिसमें आदमी के ज़मीन पर उतरते ही उसकी ज़िन्दगी का लेखा-जोखा अंकित हो जाता है। फिर आदमी को ‘राई घटै,न तिल बढ़ै’ के हिसाब से चलना पड़ेगा। यह प्रश्न उठता है कि पूरी दुनिया के आदमियों के लिए एक ही सुपर कंप्यूटर है या अलग-अलग धर्म के अलग कंप्यूटर हैं? इस भारी-भरकम काम को अकेले चित्रगुप्त संभालते हैं या अलग-अलग धर्म के अलग-अलग चित्रगुप्त हैं? यह सवाल भी पैदा होता है कि क्या हर धर्म के अपने अलग स्वर्ग और नरक हैं?
जमावड़े के निर्णय के लीक होते ही मालदारों के परिवारों और रिश्तेदारों के बीच हड़कंप मच गया। मालदारों की अनेक संतानें मायूस होकर ‘डिप्रेशन’ में चली गयीं। बहुत सी बहुओं ने सुबह-शाम ससुर जी के पांव छूना और उनकी आरती उतारना शुरू कर दिया। कुछ बेटों से पिताजी को धमकी मिलने लगी कि अगर उनको अपनी संपत्ति अपने साथ ही ले जाना है तो वे अपना अलग इंतजाम कर लें और उनसे सेवा- ख़िदमत की उम्मीद न रखें। कई परिवारों में बुज़ुर्गों पर नज़र रखी जाने लगी कि वे कहां जाते हैं और किससे मिलते हैं।
उधर सरकार के पास बात पहुंची तो उसकी तरफ से मालदारों को समझाया गया कि इस मांग को छोड़ दें क्योंकि यहां की मुद्रा वहां चलती नहीं है। वहां ‘बार्टर’ या वस्तु-विनिमय चलता है या स्वर्ण का आदान-प्रदान होता है। इस पर मालदारों का जवाब था कि यहां की मुद्रा वहां चले न चले, उनका इरादा उसे बरबादी से बचाना था।
दबाव ज़्यादा बढ़ा तो सरकार की तरफ से निर्णय लिया गया कि तत्काल एक ताकतवर अंतरिक्ष-यान पर काम शुरू किया जाए जो स्वर्ग और नरक तक पहुंच सके और फिर वहां कुछ बैंकों की शाखाएं खोली जाएं जहां मालदारों का माल ट्रांसफर किया जा सके। इसके लिए ऊपर पहुंचे हुए बैंक कर्मचारियों, अधिकारियों की मदद ली जा सकती है।
सरकार से निर्देश पाकर वैज्ञानिक एक पावरफुल अंतरिक्ष-यान के निर्माण में जुट गये हैं जो स्वर्ग और नरक को ढूंढ़ निकालेगा। दूसरी तरफ मालदारों के परिवार-रिश्तेदार ऊपर वाले से प्रार्थना करने में जुट गये हैं कि वैज्ञानिकों की कोशिश कारगर न हो।
© डॉ कुंदन सिंह परिहार
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈