सुश्री ऋता सिंह
(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से … – संस्मरण – गुजरात की सुखद यात्रा।)
मेरी डायरी के पन्ने से # 24 – गुजरात की सुखद यात्रा – भाग – 1
(13 फरवरी 2020)
भ्रमण मेरा शौक़ है। इस बार हमने सोचा कि अपने देश के उन क्षेत्रों का दौरा किया जाए जो हमारे इतिहास और पुराणों में वर्णित हैं।
इस वर्ष हमने चुना गुजरात।
हम पुणे से सोमनाथ के लिए रवाना हुए। पुणे से सोमनाथ जाने के लिए सोमनाथ नामक कोई स्टेशन नहीं है। इसके लिए आपको वेरावल नामक स्टेशन पर उतरना होगा। पुणे से वेरावल तक रेलगाड़ी की सुविधाजनक व्यवस्था उपलब्ध है। विरावल से सोमनाथ का मंदिर सात किलोमीटर की दूरी पर है। हम पुणे से शाम को रवाना हुए और दूसरे दिन देर दोपहर को हम वेरावल पहुँचे।
गुजरात जानेवाली रेलगाड़ियों में केटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं होती है। यह मेरा अनुभव रहा इसलिए हम पर्याप्त भोजन सामग्री साथ लेकर ही चले थे।
होटल पहुँचकर नहा धोकर हम मंदिर का दर्शन करना चाहते थे।
हमने शाम को ही सोमनाथ मंदिर का दर्शन किया। इसे प्रथम ज्योर्तिलिंग मंदिर माना जाता है। सुंदर, साफ़ – सुथरा विशाल परिसर जो समुद्र के तट पर ही स्थापित है। हमें संध्या के समय आरती में शामिल होने का अवसर मिला। मंदिर में स्त्री पुरुषों की कतारें अलग कर दी जाती है। मंदिर के गर्भ गृह का सौंदर्य देखते ही बनता है। आज अधिकांश हिस्सा चाँदी का बनाया हुआ है, पहले यही सब सोने से मढ़ा रहता था। आरती में उपस्थित रहकर मन प्रसन्न हुआ।
यह फरवरी का महीना था। डूबते सूरज की किरणों से मंदिर का कलश स्वर्णिम सा चमक रहा था। धीरे धीरे अस्ताचल भानु के साथ कलश का रंग मानो बदलने लगा। कुछ समय बाद केवल कलश पर ही सूर्य की किरणें पड़ने लगीं। उस दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई भक्त प्रभु की वंदना करके बिना पीछे मुड़े धीरे -धीरे प्रभु की ओर ताकते हुए मंदिर से विदा ले रहा हो। समुद्र जल में सूर्य विलीन हो गया। आसमान अचानक लाल-सुनहरी छटाओं से पट गया मानो शिवजी के सुंदर विस्तृत तन पर पारदर्शी सुनहरी ओढ़नी डाल दी गई हो। आकाश को देख मन मुग्ध हो उठा।
समुद्र की लहरें दौड़ -दौड़ कर मंदिर की दीवारों को ऐसे छूने आतीं मानो छोटा बच्चा माँ की गोद में चढ़ने के लिए मचल रहा हो और जब माँ उसे पकड़ना चाह रही हो तो नटखट फिर भाग रहा हो। साथ ही ठंडी हवा तन -मन को शीतल कर रही थी। समस्त परिसर में सुगंध प्रसरित थी।
शाम को सूर्यास्त के बाद लाइट एंड साउंड कार्यक्रम का हमने आनंद लिया। उसके विशाल इतिहास की जानकारी फिर एक बार ताज़ी हो गई। इस विशाल और आकर्षक मंदिर की रचना सबसे पहले किसने की थी इसके बारे में विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है परंतु ऋग्वेद में इसके तब भी होने का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है आज से कुछ 3500 वर्ष पूर्व चंद्रदेव सोमराज ने इस मंदिर की संरचना की थी।
जिस मंदिर की संपदा को एक ही विदेशी ताक़त ने सत्रह बार लूटा, वहाँ कितनी संपदा रही होगी जिसे वे लूटने बार -बार आए होंगे?
मेरे मन में सवाल उठता है कि इतना वैभवशाली राज्य ने एक-दो आक्रमण के बाद भी सुरक्षा बल तैनात रखने की आवश्यकता महसूस न की ? हमने क्या तब भी अपनी सुरक्षा की बात न सोची? क्या हम भारतीयों में सच में एकता का अभाव था जो विदेशी आ – आकर हमें लूटते रहे? हम देश के नागरिक इतने बेपरवाह से बर्ताव क्यों करते रहे !!
मंदिर कई बार ध्वस्त किया गया, हिंदुओं की मूर्त्ति पूजा का विरोध यहाँ राज करनेवाले हर मुगल ने किया। आखरी बार औरंगजेब ने इसे बुरी तरह से ध्वस्त किया। हिंदू राजाओं ने बार – बार मंदिर का निर्माण भी किया। आज मंदिर पहले की तरह स्वर्ण से भले ही मढ़ा न हो पर उसकी भव्यता और सौंदर्य को बनाए रखने का भरसक प्रयास किया गया है।
आज हम जिस मंदिर का दर्शन करते हैं उसे सन 1950 में भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने दोबारा बनवाया था। पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया।
आज यहाँ भारी सुरक्षा की व्यवस्था है जो गुजरात सरकार के मातहत है। फोटो खींचने तक की सख्त मनाही है। मोबाइल, कैमरा आदि जमा कर देने पड़ते हैं। काफी दूर तक चलने के बाद मंदिर का परिसर प्रारंभ होता है। मंदिर के बाहर मेन रोड है आज, शायद कभी वहाँ बाज़ार हुआ करता था।
यह वेरावल शहर समुद्रतट पर बसा होने के कारण शहर में घुसते ही हवा में मछली की तीव्र बू आती है। यहाँ भारी मात्रा में मछली पकड़ने का व्यापार किया जाता है। पचास प्रतिशत लोग मुसलमान हैं जो मछली पकड़ने का ही व्यापार करते हैं। यहाँ नाव बनाने और उनकी मरम्मत करने के कई कारखाने हैं। मूल रूप से लोग समुद्र से जुड़े हुए हैं।
यहाँ के लोग मृदुभाषी हैं। सभी गुजराती और हिंदी बोलते हैं। सभी एक दूसरे की मदद के लिए तत्पर रहते हैं। दो धर्मों के बीच मतभेद कहीं न दिखाई दिया जो आमतौर पर टीवी पर टीआरपी बढ़ाने के लिए दिखाए जाते हैं। लोग मिलनसार हैं और सहायता के लिए तत्पर भी। आनंद आया सोमनाथ का दर्शन कर और वेरावल के निवासियों का स्नेहपूर्ण व्यवहार पाकर।
क्रमशः…
© सुश्री ऋता सिंह
फोन नं 9822188517
ईमेल आई डी – ritanani[email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈