श्री अनूप कुमार शुक्ल  

परिचय 

जन्मतिथि: 20.04.1964

शिक्षा: बी. ई . (मेकेनिकल), एम. टेक. (मशीन डिजाइन)

प्रकाशित पुस्तकें: 

  1. पुलिया पर दुनिया 2. बेवकूफी का सौन्दर्य 3. झाड़े रहो कलट्टरगंज 4. सूरज की मिस्ड कॉल 5. घुमक्कड़ी की दिहाड़ी 6. आलोक पुराणिक –व्यंग्य का एटीएम 7. अनूप शुक्ल -चयनित व्यंग्य

हिन्दी ब्लागिंग में 2004 से सक्रिय। ब्लाग फ़ुरसतिया (fursatiya.blogspot.com) एवं चिट्ठा चर्चा (chitthacharcha.blogspot.com) में 2000 से अधिक लेख प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित।

सम्मान: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘सूरज की मिस्ड कॉल’ पर सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ सम्मान एवं ‘घुमक्कड़ी की दिहाड़ी’ पर बाबू गुलाब राय सम्मान।

संप्रति: भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय से उपमहानिदेशक पद से अप्रैल, 2024 में सेवानिवृत्त। 

ईमेल: [email protected]

फ़ेसबुक: https://www.facebook.com/anup.shukla.14

व्यंग्यकार अनूप शुक्ला कानपुर: http://fursatiya.blogspot.com/2006/08/blog-post.html?m=1

(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व स्व. फ़िराक़ गोरखपुरीके संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)

आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆   

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ 

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १७ – “डॉ. श्री राम ठाकुर दादा- समाज सुधारक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १८ – “राजकुमार सुमित्र : मित्रता का सगुण स्वरुप” – लेखक : श्री राजेंद्र चन्द्रकान्त राय ☆ साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १९ – “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २० – “सच्चे मानव थे हरिशंकर परसाई जी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २१ – “ज्ञान और साधना की आभा से चमकता चेहरा – स्व. डॉ कृष्णकांत चतुर्वेदी” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २२ – “साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी  स्व. राजेन्द्र “रतन”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २३ – “मेरी यादों में, मेरी मुंह बोली नानी – सुभद्रा कुमारी चौहान” – डॉ. गीता पुष्प शॉ ☆ प्रस्तुती – श्री जय प्रकाश पांडे ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २४ – “संस्कारधानी के सिद्धहस्त साहित्यकार -पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी” – लेखक : श्री अजय कुमार मिश्रा ☆ संकलन – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २५ – “कलम के सिपाही – मुंशी प्रेमचंद” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २६ – “यादों में रहते हैं सुपरिचित कवि स्व चंद्रकांत देवताले” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

 

स्व. फ़िराक़ गोरखपुरी 

आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हमअस्रों

जब ये ख्याल आयेगा उनको,तुमने फ़िराक़ को देखा था।

☆ कहाँ गए वे लोग # २७ ☆

☆ “स्व. फ़िराक़ गोरखपुरी” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

फ़िराक़ गोरखपुरी बीसवीं सदी के उर्दू के महान शायर थे। फ़िराक़ का जन्म 28 अगस्त 1886 में गोरखपुर में हुआ। बी.ए. में पूरे प्रदेश में चौथा स्थान पाने के बाद आई.सी.एस. में चुने गये। 1920 में नौकरी छोड़ दी तथा स्वराज्य आंदोलन में कूद पड़े। डे़ढ साल जेल में रहे। जेल से छूटने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने अखिल भारतीय कांग्रेस के दफ्तर में ‘अण्डर सेक्रेटरी’ की जगह दिला दी। बाद में नेहरू जी के यूरोप चले जाने के बाद कांग्रेस का ‘अण्डर सेक्रेटरी’ पद छोड़ दिया। फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1930  से लेकर 1959 तक अंग्रेजी के अध्यापक रहे। 1970 में उनकी उर्दू काव्यकृति ‘गुले नग्‍़मा’ पर ज्ञानपीठ पुरुस्कार मिला। सन् 1982 में उनका देहावसान हुआ।

फ़िराक़ का व्यक्तित्व बहुत जटिल था। तद्भव के सातवें अंक में फ़िराक गोरखपुरी पर विश्वनाथ त्रिपाठी ने बहुत विस्तार से संस्मरण लिखा है। फ़िराक़ के व्यक्तित्व के विविध पहलुओं के बारे में इस संस्मरणात्मक लेख में बताया गया। 

फ़िराक़ गोरखपुरी अपने विवाह को अपने जीवन की सबसे बड़ी दुर्घटना मानते थे। वे अपने दुखों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते रहे। पत्नी को ताजिन्दगी कोसते रहे। 75 वर्ष की अवस्था में उन्होंने लिखा:-

मेरी जिन्दादिली वह चादर है, वह परदा है, जिसे मैं अपने दारुण जीवन पर डाले रहता हूँ। ब्याह को छप्पन बरस हो चुके हैं और इस लम्बे अरसे में एक दिन भी ऐसा नहीं बीता कि मैं दाँत पीस-पीसकर न रह गया हूँ। मेरे सुख ही नहीं,मेरे दुख भी मेरे ब्याह ने मुझसे छीन लिये। पिता-माता,भाइयों-बहनों,दोस्तों- किसी की मौत पर मैं रो न सका।

मैं पापिन ऐसी जली कोयला भई न राख।

विश्वनाथ त्रिपाठी जी ने फ़िराक़ के बारे में लिखते हुये जानकारी दी:-

अहमद साहब फिराक के साहब के बहुत नजदीक थे। वे उनके व्यक्तित्व के इस आयाम के आलोचक थे। उन्होंने बताया कि फिराक साहब की बीबी अच्छी थीं। देखने सुनने में और वे कभी-कभी फिराक को कोसती भी थीं। फिराक साहब उन पर कभी-कभी जुल्म भी करते थे। जैसे, एक बार वे गोरखपुर से आयीं। आते ही जैसे ही सामान नीचे रखा तो फिराक साहब ने पूछा-मरिचा का आचार लायी हो? वे लाना भूल गयीं थीं। तो फिराक साहब ने उसी वक्त उनको लौटा दिया और कहा कि जाओ मरिचा का अचार लेकर तब आओ गोरखपुर से, भूल कैसे गयी तुम? और कभी-कभी जब वे गुस्से में आती थीं तो कहती थीं कि- तुम पहले अपना थोबड़ा तो देख लो कैसे हो? वे दबती नहीं थीं। कहने का मतलब ये है कि कल्पना में कोई रूपसी चाहते होंगे फिराक साहब जो उनको नहीं मिली। एक बार सबके बीच में फिराक साहब ने बडे़ जोर से कहा कि – I am not a born homosexual, it is my wife, who has made me homosexual तो मुझे लगता है कि अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिये वे अपनी बीबी को बलि का बकरा बनाते थे। उनकी पत्नी तो सबके सामने आकर बातें कह नहीं सकतीं थीं। इसलिये फिराक साहब अपने सारे दोषों के लिये अपनी बीबी को जिम्मेदार ठहराते थे।

फिराक साहब मिलनसार थे, हाजिरजवाब थे और विटी थे। अपने बारे में तमाम उल्टी-सीधी बातें खुद करते थे। उनके यहाँ उनके द्वारा ही प्रचारित चुटकुले आत्मविज्ञापन प्रमुख हो गये । अपने दुख को बढ़ा-चढ़ाकर बताते थे। स्वाभिमानी हमेशा रहे। पहनावे में अजीब लापरवाही झलकती थी-

टोपी से बाहर झाँकते हुये बिखरे बाल,शेरवानी के खुलेबटन,ढीला-ढाला (और कभी-कभी बेहद गंदा और मुसा हुआ) पैजामा, लटकता हुआ इजारबंद, एक हाथ में सिगरेट और दूसरे में घड़ी, गहरी-गहरी और गोल-गोल- डस लेने वाली-सी आँखों में उनके व्यक्तित्व का फक्कड़पन खूब जाहिर होता था।

लेकिन बीसवीं सदी के इस महान शायर की गहन गंभीरता और विद्वता का अंदाज उनकी शायरी से ही पता चलता है।लेकिन बीसवीं सदी के इस महान शायर की गहन गंभीरता और विद्वता का अंदाज उनकी शायरी से ही पता चलता है। जब वे लिखते हैं :-

जाओ न तुम हमारी इस बेखबरी पर कि हमारे

हर ख्‍़वाब से इक अह्‌द की बुनियाद पड़ी है।

फिराक साहब की कविता में सौन्दर्य के बड़े कोमल और अछूते अनुभव व्यक्त हुये हैं। एक शेर है:-

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

ये हुस्नों इश्क धोखा है सब मगर फिर भी।

1962  की चीन की लड़ाई के समय फिराक साहब की यह गजल बहुत मशहूर हुई:-

सुखन की शम्मां जलाओ बहुत उदास है रात

नवाए मीर सुनाओ बहुत उदास है रात

कोई कहे ये खयालों और ख्वाबों से

दिलों से दूर न जाओ बहुत उदास है रात

पड़े हो धुंधली फिजाओं में मुंह लपेटे हुये

सितारों सामने आओ बहुत उदास है रात।

शायद अपने जीवन के आखिरी दिनों में फिराक साहब ने लिखा:-

अब तुमसे रुख़सत होता हूँ आओ सँभालो साजे़- गजल,

नये तराने छेडो़,मेरे नग्‍़मों को नींद आती है।

अपने बारे में अपने खास अंदाज में लिखते हुये फिराक साहब ने लिखा था:-

आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हमअस्रों

जब ये ख्याल आयेगा उनको,तुमने फ़िराक़ को देखा था।

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साभार – व्यंग्यकार श्री अनूप शुक्ल (कानपुर)

प्रस्तुति -जय प्रकाश पाण्डेय 

संपर्क – 416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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