श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “मौन छा गया घर-आँगन में…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 143 – मौन छा गया घर-आँगन में… ☆
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मौन छा गया घर-आँगन में।
जीवन फँसा कठिन उलझन में।।
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आई संध्या-काल घड़ी जब।
किसकी नजर लगी उपवन में?
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राह देखती रही हमारी,
प्रिय बहना रक्षाबंधन में।
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कैसी भगवन हुई परीक्षा,
विश्वासों के उत्पीड़न में!
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मात-पिता की याद आ गई,
चिंता-मुक्त खेल-बचपन में।
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अधिकारी नेता की चाहत,
धनसंचय के आराधन में।
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मानवता के शत्रु बन गए,
धर्म-पताका आरोहण में।
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आजादी की बिछी बिछायत,
सत्ता पाने की अनबन में।
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भरा पेट हो या खाली हो,
देखो बैठ रहे अनशन में।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002
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