श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “तिनकों सा बहना…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 69 ☆ तिनकों सा बहना… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

रूखी-सूखी

एक नदी का

तट बनकर रहना

यही नियति है

सदा बाढ़ में

तिनकों सा बहना।

*

क्या गंगाजल

पाप-पुण्य की

धो पाया गठरी

भाग्य लिखी है

बस अभाव की

एक अदद कथरी

*

करनी-कथनी

के मरुथल में

प्यास लिए फिरना।

*

अधुनातन की

भाग-दौड़ में

हुए स्वयं से दूर

सच के मारे

झूठ ओढ़कर

जीने को मजबूर

*

ऊबड़-खाबड़

पगडंडी पर

सड़कों का सपना।

*

धर्म-कर्म के

पाखंडों में

खोज रहे तिनका

उमर कर रही

लेखा-जोखा

एक-एक दिन का

*

समय निरंतर

कहता रहता

नहीं कहीं रुकना।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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