श्री आशिष मुळे
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ दिन-रात # 47 ☆
☆ कविता ☆ “मैफिल…” ☆ श्री आशिष मुळे ☆
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दर्दों का इक जश्न हो जाए
पियाले से बरसती साकी
आपके दिलों को भरती जाए
यारों इक मैफिल हो जाए…
उस गुलशन को याद कर
अरसे पहले मुरझा गए
उन फूलों को भी याद किया जाए
यारों इक मैफिल हो जाए…
निशाने से चुकी गोलियां गिनकर
नीचे रखी बंदूक
फिर एक बार उठाई जाए
यारों इक मैफिल हो जाए…
हम क्या आप क्या
सब मारे है फूलों के
आज काटों का भी जश्न हो जाए
यारों इक मैफिल हो जाए…
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© श्री आशिष मुळे
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈