सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम – ग़ज़ल – ज़मीं की शय नही हो तुम

? रचना संसार # 20 – ग़ज़ल – ज़मीं की शय नही हो तुम…  ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’ ? ?

 

ज़ुबाँ रखते नहीं मुँह में अगरचे बोल पड़ते हैं

बिसातें जब भी  बिछतीं  हैं पियादे बोल पड़ते हैं

 *

थके हारे भी चल पड़ते हैं शायद इस सहारे से

मिलेगी मंज़िलें बेशक सितारे  बोल पड़ते हैं

 किताबें चार क्या पढ़ लीं, बने फ़िरते हैं अब आलिम,

नसीहत दो न यूँ झुंझला के बच्चे बोल पड़ते हैं

 *

करें वो क़त्ल की साज़िश हमेशा ही निगाहों से

खुलेगा राज़ ये इक दिन इशारे बोल पड़ते हैं

 *

सितारे थम से जाते हैं, तुम्हारी इक झलक पाकर,

ज़मीं की शय नही हो तुम ये सारे बोल पड़ते हैं ।

 *

उठाते हैं वही उँगली नहीं औक़ात कुछ जिनकी

उछलता ख़ुद पे जब कीचड़ लबादे बोल पड़ते हैं

 *

सितम के खौफ़ से मीना ज़ुबाँ ख़ामोश है लेकिन

सुलगते-काँपते लोगों के चेहरे बोल पड़ते हैं

© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’

(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)

संपर्क –1308 कृष्णा हाइट्स, ग्वारीघाट रोड़, जबलपुर (म:प्र:) पिन – 482008 मो नं – 9424669722, वाट्सएप – 7974160268

ई मेल नं- [email protected], [email protected]

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकश पाण्डेय ≈

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