स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 206 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
क्रमशः आगे…
किया देह का दोहन ।
किन्तु
अभी
पूरा नहीं हुआ था
गालव का अभीष्ट ।
शुल्क में
जुट पाये थे
केवल छै सौ अश्व |
चिन्तातुर
गालव ने
फिर स्मरण किया
मित्र गरुड़ का
परामर्श के लिये ।
गरुड़ ने पूछा –
क्यों मित्र
कृतकार्य हुए?
उदास गालव ने
कहा
अभी बाकी है
गुरुदक्षिणा का
चौथाई भाग ।
गरुड़ ने कहा-
‘ने
‘मित्र
पूर्ण नहीं होगा
तुम्हारा मनोरथ ।
और
इसका कारण है।
पूर्व काल में
राजा गाधि की पुत्री
सत्यवती को पत्नी रूप में पाने
ऋचीक मुनि ने
☆
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈