श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक समसामयिक लघुकथा “मुआवजा”। श्रीमती सिद्धेश्वरी जी की यह सर्वोत्कृष्ट लघुकथा है जो अत्यंत कम शब्दों में वह सब कह देती है जिसके लिए कई पंक्तियाँ लिखी जा सकती थीं। मात्र चार पंक्तियों में प्रत्येक पात्र का चरित्र और चित्र अपने आप ही मस्तिष्क में उभर आता है। इस सर्वोत्कृष्ट समसामयिक लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 40☆
☆ लघुकथा – मुआवजा ☆
कोरोना से गांव में बुधनी की मौत।
अस्सी साल की बुधनी बेटा बहू के साथ टपरे पर रहती थी। गरीबी की मार और उस पर कोरोना का द्वंद। बुधनी अभी दो-तीन दिन से उल्टा पुल्टा चीज खाने को मांग रही थी और रह-रहकर खट्टी दही अचार खा रही थी। उसे सांस लेने में तकलीफ की बीमारी थी। बेटे ने मना किया पर मान ही नहीं रही थी। अचानक बहुत तबीयत खराब हो गई सांस लेने में तकलीफ और खांसी बुखार । बेटा समझ नहीं पाया अम्मा को क्या हो गया बुधनी अस्पताल पहुंचकर शांत हो गई। कोरोना से मरने वालों के परिवार को मुआवजा मिलता है। बुधनी ने पडोस में बातें करते सुन लिया था। शांत होकर भी बुधनी मुस्करा रही थी। अब बेटे के टपरे घर पर खपरैल लग जायेगा।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश