प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “श्री गणेश वंदना। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 194 ☆ श्री गणेश वंदना ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

☆ 1 ☆

सिध्दिदायक  गजवदन

जय गणेश गणाधिपति प्रभु 

सिध्दिदायक  गजवदन

विघ्ननाशक कष्टहारी हे परम आनन्दधन

दुखो से संतप्त अतिशय त्रस्त यह संसार है

धरा पर नित बढ़ रहा दुखदायियो का भार है

हर हृदय में वेदना आतंक का अंधियार है

उठ गया दुनिया से जैसे मन का ममता प्यार है

दीजिये सद्बुध्दि का वरदान हे करूणा अयन

जय गणेश गणाधिपति प्रभु 

सिध्दिदायक  गजवदन

☆ 2 ☆ 

☆  गणेश वंदना

आदि वन्द्य मनोज्ञ गणपति

सिद्धिप्रद गिरिजा सुवन

पाद पंकज वंदना में नाथ

तव शत-शत नमन

व्यक्ति का हो शुद्ध मन

सदभाव नेह विकास हो

लक्ष्य निश्चित पंथ निश्कंटक आत्मप्रकाश हो

हर हृदय आनंद में हो

हर सदन में शांति हो

राष्ट्र को समृद्धि दो हर विश्वव्यापी भ्रांति को

सब जगह बंधुत्व विकसे

आपसी सम्मान हो

सिद्ध की अवधारणा हो

विश्व का कल्याण हो

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments