श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “जब बढ़ जाता शोभाधन। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 213 ☆ जब बढ़ जाता शोभाधन

जीवन एक जैसा चलता रहे तो रोचकता खत्म हो जाती है, उतार- चढ़ाव होने चाहिए। जितने लोग उतनी कहानियाँ, इन सबमें असफलता, संघर्ष, परिश्रम, धन का अभाव, बाधाएँ ये सब बहुतायात में थे पर उन्होंने इसको सीढ़ी बना सर्वोच्च शिखर प्राप्त किया।

बिना परीक्षा आप नर्सरी की कक्षा तक पास नहीं कर सकते तो जीवन में सफल होने के लिए, प्रेरक बनने के लिए परीक्षाएँ तो देनी ही होगी। स्तर बढ़ने के साथ प्रश्न पत्र कठिन होता जाएगा। जितनी मेहनत उतना अच्छा परिणाम मिलेगा। तारीफ विजेता की होगी जिसका अनुभव आप कर सकते हैं क्योंकि अथक श्रम जो किया है। इस सम्बंध में एक छोटी सी कहानी याद आती है-

दो सहेलियाँ, स्वभाव एकदम विपरीत एक हमेशा अपनी स्थिति का रोना रोती रहती तो दूसरी हमेशा मुस्कुराते हुए कार्य करती। एक दिन दोनों गणेश जी की झाँकी देखने अपनी स्कूटी से गयीं, रास्ते में बहुत जाम लगा था जिसे देख पीछे की सीट में बैठी सहेली ने कहा गाड़ी सुरक्षित जगह पर खड़ी कर देते हैं, पैदल चलेंगे, इतनी भीड़ में गाड़ी से जाना मुश्किल है। आगे बैठी सहेली ने कहा आज पहली बार तुमने सही बात कही, जब भी कोई कठिन दौर हो और रास्ता न सूझे तो थोड़े परिवर्तन के साथ धीरे- धीरे ही सही पर चलना अवश्य चाहिए। उन लोगों ने गाड़ी एक दुकान के सामने खड़ी की और हाथों में हाथ डाले चल दी झाँकी देखने।

सच्चे मन से जो भी प्रयास किये जाते हैं वो अवश्य पूरे होते हैं। यही बात रिश्तों के संदर्भ में भी कारगर है, आप अपनी अपेक्षाओं को कम कर दें तो ऐसी कोई ताकत नहीं है जो आपकी जीत में बाधक बनें। कहते हैं ताली एक हाथ से नहीं बजती ये बात नकारात्मक लोगों के लिए सही हो सकती है पर सकारात्मक चिन्तन करने वाले तो व्यक्ति के भावों को पढ़कर ही महसूस कर लेते हैं कि सामने वाला क्या चाहता है। जब भी ऐसी स्थिति हो कि माहौल बिगड़ने वाला है तो चुपचाप मुस्कुराकर ऐसे बन जाएं जैसे जो हुआ वो अच्छा था और जो होगा वो इससे भी अच्छा होगा बस अपने आप सब ठीक हो जायेगा।

इसे प्राकृतिक चमत्कार मान सकते हैं मुस्कान का, यही रिश्तों को जीवित रखता है भले ही एक व्यक्ति का प्रयास क्यों न हो।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments