प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “आत्मचिंतन से विमुख ये आज का संसार। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ काव्य धारा # 195 ☆ आत्मचिंतन से विमुख ये आज का संसार ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

मै कौन हूं आया कहां से और है जाना कहाँ?

इन सरल प्रश्नों के उत्तर कठिन है पाना यहां ।

 *

आदमी उलझा है बहुत जाति  के व्यवहार में

लाभ-हानि की जोड़-बाकी में फँसा बाजार में ।

 *

है कहाँ सुधी आप की  , मन में भरी है कामना

स्नेह और सद्भाव कम है द्वेष की है भावना ।

 *

दृष्टि ओछी आज की है कल की न परवाह है

व्यर्थ ही अभिमान है सुनता न कोई सलाह है।

 *

चाह उसकी सदा होती स्वार्थ औ सम्मान की

है कहाँ अवकाश इतना सोचे आत्म ज्ञान की ।

 *

खुद से शायद कम है उसको धन के ज्यादा प्यार है

इसी से आत्म अध्ययन को न कोई तैयार है।

 *

ध्यान मन में आत्म सुख है और निज परिवार है

आत्मचिन्तन से विमुख  आजकल संसार है।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments