श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल “राब्ता है उन से दिल मुझसे लगाते हैं…” ।)
ग़ज़ल # 138 – “राब्ता है उन से दिल मुझसे लगाते हैं…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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चाय पीने को कलारी में बुलाते हैं,
ये क्यों मेरी ज़ब्त को आजमाते हैं।
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वो वस्ल का ख़्वाब दिखलाते रहे मुझे,
राब्ता है उन से दिल मुझसे लगाते हैं।
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मौलवी की कोशिश यह रही हमेशा ही,
वो खुदा के नाम पर झगड़ा कराते हैं।
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बैर ज़िंदा रखते हैं नाम पर मज़हब के,
फ़ेसबुक पर दुश्मनी का मंत्र बताते हैं।
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आतिश सभालो भभकती हो शमा जब भी,
आग भड़का वो तुम्हारा घर जलाते हैं।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈