श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “विवशता”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 206 ☆
🌻लघु कथा🌻 🍃विवशता 🍃
किताबों के ढेर की छंटनी की जा रही थी। अभय के बेटे ने कहा–पापा अब इन किताबों का कोई मतलब नहीं है। पुराने हो चुके हैं और सब बेकार हो गए हैं। इन्हें कबाड़ में देकर घर को साफ किजिए।
उन्हीं किताबों के ढेर से झांकती एक तस्वीर अचानक अभय के दिलों दिमाग को झंकृत कर गई। तब कलर फोटो का जमाना नहीं था। बड़े मुश्किल से किसी काम के लिए फोटो खिंचवाई जाती थी और उसे सहेज कर रखा जाता।
एक से दो फोटो वह भी पासपोर्ट साइज। ऐसा लगता मानो जाने कितने पैसे लग रहे हैं, किसी फार्म के लिए।
किताबों को उठा अपने सीने के पास शर्ट से पोछते अभय के अनायास नेत्र भर उठे। आज का समय होता तो शायद वह भी इसे गर्ल फ्रेंड, लिव इन रिलेशन का नाम दे देता।
परंतु न हिम्मत और न किसी प्रकार की सहायता। धीरे से फोटो निकाल कर हाथों से साफ करके देख रहा था पीछे स्याही हल्की हो चुकी थी पर लिखा दिखाई दे रहा था – – सिर्फ तुम्हारी।
अभय का बेटा मोबाइल चलाते-चलाते बाहर आया। पापा को छोटी सी तस्वीर को गौर से देखते भावविभोर होते देखा वह बोल उठा– पापा गर्लफ्रेंड या लिंव इन रिलेशन।
कितने सहज रूप से वह इस वाक्य को पापा को कह सुनाया। अभय ने भी बेटे के कंधे पर हाथ रख आँसू पोछते हुए कहा – – – बेटा सिर्फ चाहत।
जो आंखों की थी और आज भी है। अब बोलने की पारी बेटे की थी। बेटे ने बड़ी ही समझदारी और गंभीरता से कहा – – पापा अब यह कहाँ मिलता है। आप बड़े भाग्यवान है और कसकर गले लग गया।
अभय बेटे की विवशता और जमाने का चलन दोनों समझ रहे थे। शायद वह अपनी बेटे को समझा भी रहे थे काश वह समय लौट आता!!!!!
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈