सुश्री ऋता सिंह

(सुप्रतिष्ठित साहित्यकार सुश्री ऋता सिंह जी द्वारा ई- अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए अपने यात्रा संस्मरणों पर आधारित आलेख श्रृंखला को स्नेह प्रतिसाद के लिए आभार। आज प्रस्तुत है आपकी डायरी के पन्ने से …  – संस्मरण – गुजरात के दर्शनीय स्थल)

? मेरी डायरी के पन्ने से # 28 – गुजरात के दर्शनीय स्थल – भाग – 5 ?

(17 फरवरी 2020)

द्वारकाधीश का उत्तम दर्शन करके तथा आस पास की विशेष जगहें देखकर हम दूसरे दिन बड़ौदा के लिए निकले। आज इसे वडोदरा कहा जाता है।

हम द्वारका से वडोदरा तक की यात्रा ट्रेन से करने जा रहे थे। यह दूरी 516 किमी की है।

इस दूरी को पार करने के लिए साढ़े दस घंटे लगते हैं। हमारी ट्रेन सुबह 11.30 के आसपास थी। हम प्रातः उठकर एक बार फिर द्वारकाधीश का दर्शन कर आए। इस बार किसी पंडित को हमने साथ नहीं लिया। पिछली सुबह ही दर्शन कर आए थे तो मार्ग ज्ञात था।

हम जिस होटल में ठहरे थे वहीं साधारण नाश्ता करके स्टेशन के लिए निकले। यहाँ यह बता दें कि गुजरात के ट्रेनों में केटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं होती है। चाय तक नहीं मिलती। तो हमने होटल वाले से आलू की सूखी सब्ज़ी और पूड़ियाँ पैक करवा लिए। जाते समय हम अपने घर से भोजन लेकर गए थे तो हमारे पास डिसपोज़ीबल प्लेट और स्टील के डिब्बे थे। ये न होते तो वे डिसपोज़िबल बर्तनों में भोजन लपेट देते।

हम ट्रेन में बैठे तो हम चारों (भाई भावज और बहनों में) अब तक की यात्रा की चर्चा चली। समय गुज़र रहा था। हम राजकोट पहुँचे। मेरे एक अत्यंत पुराने मित्र सपत्नीक हमसे मिलने आए। साथ में रात के लिए भोजन भी लेकर आए। उन्हें पता था कि हम ग्यारह बजे के करीब वडोदरा पहुँचेंगे। मित्र की दूरदृष्टि काम आई। हम रात के ग्यारह बजे होटल पहुँचे। गुजराती मुख्य भोजन के साथ कई प्रकार के शेव, फाफड़ा, भजिया आदि खाते हैं। मित्र भी थेपले के साथ अचार और ढोकला तथा अन्य कई वस्तुएँ पैक करके लाए थे। भूख भी लगी थी तो कमरे में चाय बनाई गई और मित्र दम्पति को आशीर्वाद देते हुए हमने भरपेट भोजन का स्वाद लिया।

दूसरे दिन हम देर से उठे और वडोदरा शहर दर्शन करने निकले।

गुजरात के वडोदरा शहर में कई दर्शनीय स्थल हैं। पर चूँकि हमारे पास केवल एक ही दिन हाथ में था तो हम कुछ विशेष स्थानों पर ही दर्शन करने जा सके।

हमने पूरे दिन के लिए एक टैक्सी किराए पर ले ली और सबसे पहले लक्ष्मी विलास पैलेस देखने गए।

यह महल बड़ौदा राज्य पर शासन करने वाले मराठा राजवंश के गायकवाड़ का निवास था।

इसके एक हिस्से में अब भी शाही परिवार के सदस्य रहते हैं।

यह एक विशाल परिसर पर पत्थर से बनाया विशाल महल है। महल के सामने सुंदर हरी घास बिछी है और कुछ सीढ़ियाँ उतरने पर बड़ा सा छायादार वृक्षों का बगीचा है।

इसके भीतर एक ही मंजिल जनता के लिए है जहाँ खूबसूरत वस्तुओं का संग्रह दिखाई देता है। अलग -अलग कमरे में अलग -अलग वस्तुएँ हैं। कहीं सुंदर पॉलिश किए हुए चमकदार फूलदान और अन्य पीतल तथा ताँबे की सजावट की वस्तुएँ रखी हैं। दूसरे कमरे में कई प्रकार के फर्नीचर रखे गए हैं। इस स्थान को देखने के लिए डेढ़ घंटे लगे और वहाँ से निकलकर हम बड़ौदा संग्रहालय की ओर गए।

यह स्थान भी एक बड़ी सी इमारत है। 1894 में बने इस संग्रहालय में विविध कला, मूर्तिकला, , मुग़ल काल में बनाए गए लघुचित्र, भारतीय हस्तशिल्प, और भारतीय विविध काल के सिक्के रखे गए हैं।

दोपहर का समय हो रहा था तो हम भी एक भोजनालय की तलाश में थे। रास्ते में सुरसागर झील पड़ा जो 18वीं शताब्दी में गायकवाड़ शासकों ने बनवाई थी। यह झील 75 एकड़ में फैली है। उस दिन वहाँ कुछ मरम्मत के काम चल रहे थे तो हम बाहर से ही कुछ हिस्से देख पाए।

भोजन के बाद हम अपने निवास स्थान पर लौट आए थोड़ी देर आराम करके हम शाम पाँच बजे पुनः निकले।

इस शहर में एक भारतीय सेना द्वारा निर्मित शिव मंदिर है। हम इस मंदिर का दर्शन करने निकले।

इस मंदिर को ई.एम.ई मंदिर कहा जाता है। इसके परिसर में बाहर की गाड़ियों को प्रवेश नहीं दिया जाता। गाड़ी बाहर खड़ी करके चलकर ही हम अंदर जा सकते हैं। यह भारतीय सैन्य दल की आरक्षित स्थल है।

इस दक्षिणीमूर्ति ई एम ई मंदिर का निर्माण सन 1966 में ब्रिगेडियर ए.एफ यूजीन के कार्यकालमें उनके ही द्वारा किया गया था। वे उन दिनों ई एम ई स्कूल के कमान्डेंट थे। वे स्वयं ईस्ई धर्म के अनुयायी थे। परंतु सभी धर्मों में आस्था रखते थे।

मंदिर का परिसर बहुत बड़ा है और मुख्य मंदिर के अलावा कई छोटे -छोटे मंदिर भी बने हुए हैं। मुख्य मंदिर में शिव जी हैं।

मंदिर के प्रवेश द्वार से ही मंदिर तक जाने के लिए जो पथ बनाया गया है उसके दोनों ओर कई पुरातन उत्खनन से प्राप्त मूर्तियाँ रखी हुई हैं। मंदिर की सजावट और आकार किसी टेंट के समान है।

दर्शन के बाद संध्या हो गई और हम सूती कपड़े खरीदने के लिए मुख्य मार्केट में घूमते रहे। कुछ खरीदारी कर हम होटल लौट आए और मुँह -हाथ धोकर भोजन के लिए निकले।

हम किसी ऐसे भोजनालत की तलाश में थे जहाँ सूप और अन्य सभी प्रकार के व्यंजन उपलब्ध हो। हम जब से गुजरात आए थे हम हर प्रकार के गुजराती भोजन का ही आनंद ले रहे थे। गुजराती भोजन में मीठापन होता है। कई प्कार की सब्ज़ियाँ बाजरे की छोटी छोटी गरम रोटी उस पर खूब सारा घी और कई प्रकार की सब्ज़ियों का हम आनंद ले चुके थे। आज हम ऐसे रेस्तराँ में पहुँचे जहाँ रोशनी मध्यम थी, हल्की और कर्णप्रिय संगीत बज रहा था। ज्यादावभीड़ न थी और न ही शोर था। हम चारों ने उत्कृष्ट तथा सुस्वादिष्ट भोजन का आनंद लेकर होटल लौटकर आए।

अगले दिन हम स्टैच्यू ऑफ यूनिटी देखने जाने वाले थे।

क्रमशः… 

© सुश्री ऋता सिंह

फोन नं 9822188517

ईमेल आई डी – ritanani[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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