श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत हैं “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 146 – मनोज के दोहे ☆
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लगती भूख विचित्र है, रखिए इस पर ध्यान।
तन-मन को आहत करे, आदि काल से भान।।
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रोटी से रिश्ते बनें, जीवन का दस्तूर।
झगड़ें रोटी के लिए, रोटी तन-मजबूर।।
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मजदूरी मजदूर की, उचित मिलें परिणाम।
क्षुधा पूर्ति को शांत कर, सुख-समृद्धि आराम।।
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श्रम जीवन का सत्य है, मिले सफलता नेक।
पशु-पक्षी मानव सभी, जाग्रत रखें विवेक।।
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सत्ता-लोलुपता बढ़े, लोकतंत्र-उपहास।
भरी तिजोरी देखती, जनता रहे उदास।।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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