श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत हैं “मनोज के दोहे”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 146 – मनोज के दोहे  ☆

लगती भूख विचित्र है, रखिए इस पर ध्यान।

तन-मन को आहत करे, आदि काल से भान।।

*

रोटी से रिश्ते बनें, जीवन का दस्तूर।

झगड़ें रोटी के लिए, रोटी  तन-मजबूर।।

*

मजदूरी मजदूर की, उचित मिलें परिणाम।

क्षुधा पूर्ति को शांत कर, सुख-समृद्धि आराम।।

*

श्रम जीवन का सत्य है, मिले सफलता नेक।

पशु-पक्षी मानव सभी, जाग्रत रखें विवेक।।

*

सत्ता-लोलुपता बढ़े, लोकतंत्र-उपहास।

भरी तिजोरी देखती, जनता रहे उदास।।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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