आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि। संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी रचना ” दोहा सलिला”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 1 ☆
☆ दोहा सलिला ☆
घर में रह परिवार सँग, मिल पाएँ आनंद
गीत गाइए हँसी के, मुस्कानों के छंद
दोहा दुनिया में नहीं, कोरोना का रोग
दोहा लेखन साधना, गीत जानिए योग
नमन चिकित्सक को करें, नर्स देवियाँ मान
कंपाउंडर कर्मठ बहुत, हैं समाज की जान
सामाजिक दूरी रखें, खुद को दें उपहार
मिलना-जुलना छोड़ दे, जो वह सच्चा यार
फिक्र काम की छोड़िए, कुछ दिन रह निष्काम
काम करें गृहवास कर, भला करेंगे राम
मनपसंद पुस्तक उठा, जी भर करिए पाठ
जो जी चाहे बना-खा, करें शाह सम ठाठ
घर से बाहर जो गया, खड़ी हो गई खाट
कोरोना दे पटकनी, मारे धोबीपाट
घरवाली को निहारें, बाहरवाली भूल
घरवाले के बाग में, खिलिए बनकर फूल
बच्चों के सँग खेलिए, मारें गप्पे खूब
जो जी चाहे खा-बना, हँसें खुशी में डूब
© आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’
२१-३-२०२०
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