आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है हम अभियंता…।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 206 ☆

☆ हम अभियंता ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

हम अभियंता!, हम अभियंता!!

मानवता के भाग्य-नियंता…

*

माटी से मूरत गढ़ते हैं,

कंकर को शंकर करते हैं.

वामन से संकल्पित पग धर,

हिमगिरि को बौना करते हैं.

नियति-नटी के शिलालेख पर

अदिख लिखा जो वह पढ़ते हैं.

असफलता का फ्रेम बनाकर,

चित्र सफलता का मढ़ते हैं.

श्रम-कोशिश दो हाथ हमारे-

फिर भविष्य की क्यों हो चिंता…

*

अनिल, अनल, भू, सलिल, गगन हम,

पंचतत्व औजार हमारे.

राष्ट्र, विश्व, मानव-उन्नति हित,

तन, मन, शक्ति, समय, धन वारे.

वर्तमान, गत-आगत नत है,

तकनीकों ने रूप निखारे.

निराकार साकार हो रहे,

अपने सपने सतत सँवारे.

साथ हमारे रहना चाहे,

भू पर उतर स्वयं भगवंता…

*

भवन, सड़क, पुल, यंत्र बनाते,

ऊसर में फसलें उपजाते.

हमीं विश्वकर्मा विधि-वंशज.

मंगल पर पद-चिन्ह बनाते.

प्रकृति-पुत्र हैं, नियति-नटी की,

आँखों से हम आँख मिलाते.

हरि सम हर हर आपद-विपदा,

गरल पचा अमृत बरसाते.

सलिल’ स्नेह नर्मदा निनादित,

ऊर्जा-पुंज अनादि-अनंता…

हम अभियंता…

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१८-४-२०१४

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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