स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 209 – कथा क्रम (स्वगत)…
(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )
क्रमशः आगे…
ऋषि विश्वामित्र ने
प्रसन्नता के साथ
स्वीकार किया
माधवी को ।
रमण के
फलस्वरूप
पुत्र हुआ
‘अष्टक’
(धन्य हैं ज्ञानी पुरुष)
गुरुदक्षिणा
शुल्क
और रमण का चक्र पूरा हुआ ।
विडम्बना यह कि
विश्वामित्र ने
माधवी को दिया
आशीष
धर्म, अर्थ सम्पन्नता का ।
( धन्य हैं तपस्वी )
ऋषि गालव की
शुल्क याचना
और
पिता के वचनों
के
पालन के बाद
माधवी लौटी
पिता ययाति के पास ।
क्या सोचा होगा
ययाति ने
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© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈