श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी लघुकथा “सिंदूर”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #6 ☆
☆ सिंदूर ☆
मोहन ने सभी तरह के प्रयास किए, मगर मोहनी उस के जाल में नहीं फंसी.
“आप से दस बार कह दिया कि मैं अपने पति रमण जी के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती हूँ.”
मोहन भी पूरा जिद्दी था. “आप चाहे जो सोचे. मगर एक बार मेरे नाम की ही सही. एक चीज आप को पहनना ही पड़ेगी. हम आप से प्रेम करते है .”
मगर मोहनी ने कभी कोई चीज नहीं ली.
वही मोहन आज उज्जैन से आया था. ” लीजिए रमण जी ! आप ने उज्जैन की प्रसिद्ध चीज – यह सिंदूर मंगाया था.”
“अरे हाँ , मोहन जी लाइए.” कह कर रमण ने सिंदूर अपनी पत्नी मोहनी को पकड़ा दिया.
मोहनी के तन-मन में आग लग गई,” नहीं चाहिए मुझे सिंदूर,” कहते हुए मोहनी चीख उठी और सिंदूर की डिब्बी जोर से एक और फेंक दी.
सिंदूर की डिब्बी सीधे मोहन के शरीर पर गिरी और वे पूरे लाल हो गए. मानो वे मोहनी के क्रोध में नहा गए हों .
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
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