श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी  के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ  “जय  प्रकाश के नवगीत ”  के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “समझौते अटपटे हुए हैं…” ।

✍ जय प्रकाश के नवगीत # 73 ☆ समझौते अटपटे हुए हैं… ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

घर में ही घर बँटे हुए हैं

दीवारों से सटे हुए हैं ।

*

अम्मा बाबूजी परछी में

आँगन तुलसी कटे हुए हैं ।

*

बड़की भौजी अब भी कहती

समझौते अटपटे हुए हैं ।

*

सबके सब कानून कायदे

बच्चों तक को रटे हुए हैं।

*

किसको कहें कौन है दोषी

सबके सब तो छटे हुए हैं ।

*

अपनापन खो गया कहीं पर

रिश्ते सारे फटे हुए हैं ।

*

भरें उड़ान भला अब कैसे

सबके ही पर कटे हुए हैं ।

***

© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव

सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)

मो.07869193927,

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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