श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।
श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 43 – जो बाँचेगा, वही रचेगा, जो रचेगा, वही बचेगा ☆ अमृत -2 ☆
मुझे अमृत
कभी मत देना,
मिल भी जाए
तो हर लेना,
चक्रपाणि,
ये चाह मुझे
जिलाये रखती है
मंथन को
टिकाये रखती है,
मैं जीना चाहता हूँ
मैं लिखना चाहता हूँ!
© संजय भारद्वाज
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
मैं जीना चाहता हूँ मैं लिखना चाहता हूँ मुझे अमृत मत देना चक्रपाणि ! अपने उद्देश्य की पूर्ति में रचनाकार अपनी सृजनशीलता पर क़ायम रहना चाहता है और दोहराता है – जो बाँचेगा वही रचेगा जो रचेगा वही बचेगा अपनी लक्ष्य – पूर्ति में रचनाकार बस रचना चाहता है , बचना चाहता है – इस लक्ष्य पूर्ति में उसने अपनी पूरी 25 वर्षों की सृजन – शक्ति लगा दी है , आज माननीय प्रधानमंत्री के सम्मान के पात्र हैं तो कल अवनि, अनिल और अंबर में ‘उबूंटू ‘घोष वाक्य के साथ आपकी निष्काम सेवाएँ अनुकरणीय होंगी , मानवता का पथ… Read more »
आत्मीयता हेतु हार्दिक धन्यवाद।