श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय आलेख “बाल साहित्यकार कैसा हो?

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 188 ☆

☆ आलेख – बाल साहित्यकार कैसा हो? ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ 

☆ जो बच्चों को जाने वही बाल साहित्यकार : जो बच्चों को दुनिया की सैर कराएं

क्या सच में सिर्फ बच्चे को जानने वाला ही बाल साहित्यकार हो सकता है?

यह एक दिलचस्प सवाल है जिसके जवाब में हमें बाल साहित्य की गहराइयों में उतरना होगा। क्या बाल साहित्य सिर्फ मनोरंजन का माध्यम है या इससे कहीं ज्यादा है? क्या एक बाल साहित्यकार का काम सिर्फ बच्चों को कहानियां सुनाना है या उनका मन और मस्तिष्क भी विकसित करना है?

बाल साहित्य: सिर्फ कहानियां नहीं

बाल साहित्य बच्चों के लिए एक खिड़की की तरह होता है, जिसके ज़रिए वे दुनिया को देखते हैं। यह उनके मन को समृद्ध करता है, उनकी कल्पना शक्ति को बढ़ाता है और उन्हें जीवन के मूल्यों से परिचित कराता है। एक अच्छा बाल साहित्यकार न केवल बच्चों को मनोरंजन करता है बल्कि उन्हें सोचने, समझने और सवाल करने के लिए प्रेरित भी करता है।

बच्चों को जानना जरूरी, लेकिन काफी नहीं

हाँ, यह सच है कि एक बाल साहित्यकार को बच्चों की मनोदशा, उनकी रुचियों और उनकी भाषा को अच्छी तरह समझना चाहिए। लेकिन सिर्फ इतना ही काफी नहीं है। एक सफल बाल साहित्यकार को एक अच्छे लेखक की तरह होना भी जरूरी है। उसे कहानी कहने की कला आनी चाहिए, पात्रों को जीवंत बनाना आना चाहिए और भाषा पर पकड़ होनी चाहिए। वह क्या लिखकर क्या संदेश भेज देना चाहता है? यह सब बातें उसे आनी चाहिए।

बच्चे जिस चीज के बारे में नहीं जानते हैं उस अज्ञात चीजों को बातें करके उनकी रूचि और जिज्ञासा को बढ़ाया जा सकता है। उदाहरण के लिए हम रूडयार्ड किपलिंग का उदाहरण लें। उन्होंने ‘जंगल बुक’ जैसी कहानियों के माध्यम से बच्चों को प्रकृति और जानवरों के बारे में बहुत कुछ सिखाया। चूँकि बच्चे उनके बारे में नहीं जानते हैं इसलिए ऐसी कहानी पढ़ने में उनकी बहुत जरूरी रहती है। ऐसी कहानियों को आनंद के साथ पढ़ते हैं।

एक अच्छा बाल साहित्यकार वह होता है जो:

बच्चों की भाषा में लिखता है: वह ऐसी भाषा का प्रयोग करता है जिसे बच्चे आसानी से समझ सकें।

कल्पना शक्ति को बढ़ाता है: वह बच्चों की कल्पना शक्ति को उड़ान देने के लिए नए-नए विचारों और कहानियों का प्रयोग करता है।

सकारात्मक मूल्यों को बढ़ावा देता है: वह बच्चों में सत्य, अहिंसा, प्रेम और करुणा जैसे गुणों को विकसित करने के लिए प्रेरित करता है।

बच्चों को सोचने के लिए प्रेरित करता है: वह बच्चों को सवाल करने और अपनी राय बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

बच्चों के हितों को ध्यान में रखता है: वह ऐसी कहानियाँ लिखता है जो बच्चों को पसंद आती हैं और उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।

निष्कर्ष

बाल साहित्यकार होना सिर्फ एक बच्चे को जानने से कहीं ज्यादा है। यह एक कला है, एक शिल्प है, एक भाव और एक जिम्मेदारी भी है। एक अच्छा बाल साहित्यकार बच्चों के लिए एक मित्र, एक गुरु, एक पालक और एक मार्गदर्शक होता है। वह बच्चों के मन में बीज बोता है जो पूरे जीवन भर फलते-फूलते रहते हैं।

अंत में, यह कहना गलत होगा कि सिर्फ बच्चे को जानने वाला ही बाल साहित्यकार हो सकता है। एक सफल बाल साहित्यकार वह होता है जो बच्चों को जानने के साथ-साथ एक अच्छा लेखक भी होता है।

आप क्या सोचते हैं? क्या आप सहमत हैं इस बात से कि सिर्फ बच्चे को जानने वाला ही बाल साहित्यकार हो सकता है?

© श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

14-08-2024

संपर्क – 14/198, नई आबादी, गार्डन के सामने, सामुदायिक भवन के पीछे, रतनगढ़, जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) पिनकोड-458226

ईमेल  – [email protected] मोबाइल – 9424079675 /8827985775

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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