श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 104 ☆ देश-परदेश – सी सी टीवी कैमरा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

दो दशक से अधिक समय हो गया, सीसी टीवी कैमरा को हमारे देश में पदार्पण किए हुए। वर्ष दो हज़ार में अजमेर शाखा में पदस्थापना के समय बैंक की शाखा में एक फ्रॉड में करीब सात लाख का नगद भुगतान हो गया था। शाखा प्रबंधक ने पास के एक हलवाई की दुकान पर लगे हुए सीसी टीवी कैमरे का मुआयना कर आने के लिए हमें कहा था।

हलवाई की रसोई दुकान के ऊपर थी जहां कर्मचारी मिठाई आदि बनाते थे, नीचे बिक्री होती थी, जहां मालिक बैठ कर गल्ला संभालने के साथ रसोई में लगे कैमरे से नज़र रखता था। हम रसोई में भी गए, और कर्मचारियों से बात की, वो परेशान से लगे, बोले पहले हम दिन के अनेक बार दूध पी जाते थे, एक दो मुट्ठी मेवें भी डकार जाते थे, अब सीसी टीवी से ये सब बंद हो गया है।

आजकल घर के अलावा गलियों, बाजारों आदि में भी कैमरे लग चुके हैं। कुछ दिन पूर्व एक मित्र के घर जाना हुआ, उनके घर के बाहर अलीगढ़ी ताला देख, यू टर्न लेकर घर आ गए। दूसरे दिन मित्र का फोन आया, तो बोला, बता कर आना चाहिए था। उसने हमें कैमरे में देख लिया था।

वो अपने कैमरे की तारीफ़ में कसीदे पढ़ कर उस पर खर्च की गई राशि से अपनी रईसी प्रमाणित करने के लिए प्रयासरत था। हमने उससे पूछा क्या तुम्हारे कैमरे में कभी चलती हुई चीटियां दिखती हैं क्या ? वो बोला नहीं कुत्ते बिल्ली अवश्य दिख जाते हैं।

उसने जिज्ञासा से पूछा ये चीटियां दिखने का क्या उपयोग होता होगा ? हमने उससे कहा, कि हमारे कैमरे में पड़ोस के घर में जाती हुई चींटियां भी दिखती है, इसका मतलब पड़ोसी के यहां कुछ ताजा ताजा मीठा बन रहा है। बाज़ार की दुकानों में से तो जिंदा कीड़े निकलते हैं, इसलिए लोग घर में निर्मित ताज़ा मीठा ही खाना पसंद करते हैं।

विगत माह एक बहुत बड़े आदमी के यहां विवाह में जाना हुआ, स्टेज पर भीड़ को देखते हुए बिना लिफाफा दिए हुए, भोजन ग्रहण कर वापिस आ गए। कुछ दिन पूर्व विवाह परिवार से एक व्यक्ति मिला, और नाराज़ होकर बोला, आप विवाह में पधारे नहीं, हमने स्वास्थ्य का हवाला देकर, किनारा काट लिया। बात आई गई हो गई। एक दिन विवाह वाले घर से उनके मुनीम का फोन आया, और कहने लगा, जब आप विवाह में आए थे, तो फिर मना क्यों किया। हमने कैमरे में आपको वापिस जाते हुए देखा है, और लिफाफा भी आपकी कमीज की ऊपरी जेब में स्पष्ट दिख रहा है। हमें तो “काटों तो खून नहीं”।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments