श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “बिन माँगे मोती मिले। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 216 ☆ बिन माँगे मोती मिले

स्वदेश, परदेश, उपदेश का बहुत गहरा नाता है लोग चाहें या न चाहें ज्ञान बाँट देते हैं। जैसे ही पता चलता है कोई अनचाही समस्या से ग्रस्त है तो पर उपदेश कुशल बहुतेरे की कहावत को चरितार्थ करने हेतु दिग्गजों की लाइन लग जाती है। एक गया नहीं कि दूसरा हाजिर अब बेचारी घर की महिलाएँ तो चाय पानी में व्यस्त हो जातीं हैं।

दुःखी व्यक्ति सबकी सलाह सुनकर मन ही मन प्रण लेता है कि अब कुछ हो जाए किसी के सामने उदास नहीं होना वरना इतने सुझाव मिलते हैं कि कौन सा अपनाएँ यही समझ में नहीं आता। हर पल सकारात्मक रहिए, ऐसा व्यवहार कि आपसे मिलकर जो भी जाए वो मुस्कुराते हुए दिखना चाहिए। मधुर व्यवहार की कला जिसको आती है उसे सबको अपना बनाने में देर नहीं लगती है। चीजों को अपने अनुरूप करने के लिए खुले मन से

सबके विचारों का स्वागत करें, पहले जाँचे परखे फिर समाधान की ओर कदम बढ़ाइए। सुनिए सबकी करिए अपने मन की। बस बढ़े हुए कदम रुकने नहीं चाहिए।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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