प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “होती प्रीति की भावना…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ काव्य धारा # 199 ☆ होती प्रीति की भावना… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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चेहरा है शरीर का ऐसा अंग प्रधान
जिससे होती आई है हर जन ही पहचान।
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द्वेष भाव संसार में है एक सहज स्वभाव
जाता है बड़ी मुश्किल से कर ढेरों उपाय ।
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स्वार्थ, द्वेष हैं शत्रु दो सबके प्रबल महान
जो उपजाते हृदय में लोभ और अभियान | ।
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होती प्रीति की भावना गुण-दोषों अनुसार
पक्षपात होता जहाँ दुखी वही परिवार
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जिनका मन वश में सदा औ खुद पर अधिकार
उन्हें डरा सकता नहीं कभी भी यह संसार ।
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इस दुनियाँ में हरेक का अलग अलग संसार
वैसा करता काम जन जैसा सोच विचार
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बहुतों को होता नहीं खुद का पूरा ज्ञान
क्योंकि उनकी बुद्धि को हर लेता अभिमान।
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हर एक जैसा सोचता वैसे करता काम
सहना पड़ता भी किये करमो का परिणाम ।
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी भोपाल ४६२०२३
मो. 9425484452
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈