श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 309 ☆
कविता – घृणा से निपटना ही होगा… श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
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मुफ्त है
घृणा,
वही बंट रही है
दुनियां भर में
मुलम्मा चढ़ाया जाता है
घृणा पर
श्रेष्ठता और गर्व का
राजनैतिक दलों द्वारा
वोटों का सौदा करने
उम्दा जांचा परखा
फार्मूला है यह
एक वर्ग के
मन में
दूसरे के प्रति
नफरत भरना
आसान है।
कहीं जाति
कहीं मूल निवासी
कहीं सोशल स्टेटस
कहीं गोरा काला
इत्यादि इत्यादि
के वर्ग बनाना सरल है
निंदा , ईर्ष्या की फसलें खरपतवार सी उपजती हैं ।
मुश्किल है
पराली के धुएं सी
छा जाती इस
धुंध से पार पाना
पर
इस मुश्किल से
है निपटना दुनियां को हर हाल में।
चुनौती है
जहरीले झाग से
यमुनोत्री से आती
मछलियों के
सुकोमल
मन तन को बचाना
पर बचाना तो है ही
घृणा के बारूद से दुनियां।
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© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
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