आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक भावप्रवण रचना – जाँ निसारी का हुनर है आशिकी…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 77 – जाँ निसारी का हुनर है आशिकी… ☆ आचार्य भगवत दुबे
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मौत ने, अहसान हम पर ये किया
उसने मेरा कत्ल, किश्तों में किया
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हमको, धोखे के सिवा कब, क्या मिला
बात पर तेरी, यकीं हमने किया
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नोंचकर, चट्टान का मुँह, आए हैं
जंग का ऐलान, यूँ हमने किया
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वो, भिखारी या फरिश्ता कौन था
उसको दुतकारा, बुरा तुमने किया
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जाँ निसारी का हुनर है आशिकी
जलकर, परवाने ने पुख्ता ये किया
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पाँव फिसला, गोद में आकर गिरे
तुमने ये अहसान अनजाने किया
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© आचार्य भगवत दुबे
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