सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “ कोरोना ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 33☆
यह जो बढे ही जा रही थीं
इंसान से इंसान के बीच की दूरियाँ,
उसे और बढ़ा रहा है अब
यह कोरोना का आतंक!
यूँ ही आदमी अब
किसी और से हाथ मिलाने में कतराता था,
उसे अब रखना ही होगा
एक मीटर का फ़ासला,
अपने मूंह पर नकाब लगाए
चोरों सा चलना होगा,
और एक दूसरे के घर जाना तो
बंद ही हो जाएगा!
किसी की तबियत खराब होने पर
हम जो उसके हालचाल पूछने जाया करते थे,
वो अब बंद हो ही जाएगा;
बल्कि कुछ ऐसे भी होंगे
जो छुपायेंगे अपनी छींक आने वाली बात
और फैलाते जायेंगे इस जानलेवा बीमारी को!
हाँ,
मैं भी यही सब पूरी शिद्दत के साथ करूंगी
क्योंकि यही समय की मांग है…
आखिर इंसान को तो बचना ही है ना-
मुझे भी, मेरे दोस्तों को भी और अनजाने लोगों को भी!
पर शायद अब तो इंसान
करेगा आत्मचिंतन घर पर बैठकर
और सोचेगा कि कैसे जुड़ना है इंसानियत से
जब ख़त्म हो जाए प्रकोप
इस कोरोना नाम के खतरनाक वायरस का!