श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – “व्यंग्य— चिकने घड़े पर ईमानदारी का पानी”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 193 ☆
☆ व्यंग्य— चिकने घड़े पर ईमानदारी का पानी ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
वह हारने वालों में से नहीं था. उस ने सोच लिया था कि जो हो, वह चिकने घड़े पर ईमानदारी का पानी ठहरा के रहेगा. कहते हैं कि दुनिया में कोई काम असंभव नहीं है. इसलिए उस ने अपने मित्र रोहन से कहा था,” देखना यार ! एक दिन में असंभव कार्य कर के रहूंगा.”
यह सुन कर रोहन हंसा, ” तू यूं ही अपनी ऊर्जा व्यर्थ करेगा. ये चिकना घड़ा है. इस में कोई पानी नहीं ठहरता है. तू उस पर ईमानदारी का पानी ठहराने की बात कर रहा है.”
” हां, यह मैं कर के दिखाऊँगा.” रोहन ने कहा, ” हरेक व्यक्ति की अपनी शक्ति होती है. उसे अपनी शक्ति याद दिलाने की जरूरत होती है.”
” भाई, यह हनुमानजी नहीं है. इन्हें शक्ति याद दिलाई और ये उसे याद कर के समुद्र लांघने जैसा असंभव कार्य कर दें. इन्हें शक्ति याद है. मगर इन्हें कार्य नहीं करना है.”
” लगी शर्त ?”
” हां,” रोहन ने कहा और उस मित्र ने शर्त मान ली.
” चल, अब हम छह माह बाद मिलेंगे.”
” बिलकुल कह कर, ” मित्र अपनी शर्त को जीतने के लिए क्रियान्वित करने लग गया. उसे पता था कि देवीलालजी बुद्धिमान आदमी है. इन्हें बहुत अच्छी गणित आती है. यह बात ओर है कि वह अपनी बुद्धिमतता का उपयोग विद्यालय में नहीं करते हैं. मगर, क्यों नहीं करते हैं ? यह मित्र को मालुम नहीं था. उस ने तय कर लिया था कि इन की बुद्धिमतता का उपयोग कर के रहेगा.
इसलिए मित्र ने देवीलालजी से कहा, ” सर! आप को डाक विभाग का कार्य करना है.”
यह सुनते ही वे झट से मुस्काए. मानो उन्हें खजाना मिल गया हो. बोले, ” क्यों नहीं सर! आप तो जो कोई भी काम हो दीजिएगा. मैं आप का आदेश का पालन तत्परता से करूंगा.”
सुन कर मित्र खुश हो गया. फिर मन ही मन सोचने लगा. ‘ मेरा मित्र रोहन शर्त हार जाएगा.’ यह सोच कर वह मुस्कराया.
” आप यह कार्य कर लेंगे ,” मित्र ने आश्वस्त होने के लिए पूछा तो देवीलालजी मुस्कराए, ” आप के होते हुए मुझे किस बात की तकलीफ हो सकती है? आप जैसा अफसर मिलना सौभग्य की बात होती है.” कहते हुए उन्हों ने अपनी उभरी हुई तोंद पर हाथ फेरा. फिर उलझे हुए बाल पर अंगुलियां घुमाते हुए बोले, ” बस आप तो आदेश देते रहिएगा.”
तभी फोन की घंटी घनघना उठी. उधर से फोन आया था. पूरे संकुल की डाक बना कर जल्दी पहुंचानी थी. छात्र संख्या को जातिवार, वर्गवार और कक्षावार जानकारी भेजना थी.
” सर! सभी से जानकारी मंगवा लीजिए. छात्रों की जानकारी अभी भेजना है. ” मित्र के कहते ही देवीलालजी ने चपरासी को आवाज दी, ” सत्तु ! इधर आना. ”
” जी साहब !”
” मुझे सभी के टेलिफोन नंबर बता. मैं टेलीफोन लगाता हूं. तू सभी की जानकारी नोट करना,” कहते हुए वे धनाधन फोन लगाने लगे. उधर से आने वाली जानकारी को बोलबोल कर चपरासी को नोट करवाने रहे थे.
तब तक मित्र ने जानकारी का प्रारुप बना लिया था. देवीलालजी ने प्रारुप लिया, ” साहब !मैं अभी भर देता हूं.” कहते हुए उन्हों ने प्रारूप भरना शुरु किया .
” सत्तु ! जानकारी बोलना. मैं अभी भर देता हूं.” कहते हुए उन्हों ने पेन पकड़ लिया. सत्तु ने बोलना शुरू किया.
” हां, गूंदीखेड़ा की जानकारी बोल,” कहने के साथ सत्तु ने गूंदीखेड़ा की जानकारी बोल दी.
” माधोपुरा की हो गई,” देवीलालजी बोले, ” अब गूंदीखेड़ा की बोलना.”
यह सुनते ही सत्तु ने कहा, ” अभी तो गूंदीखेड़ा की बोली थी.”
” क्या !” कहते हुए देवीलालजी ने प्रारूप में झट से क्रास लाइन फेर दी, ” अरे यार ! तू ने गलत करवा दिया.”
मित्र आवाक था. बड़ी मेहनत से बना हुआ प्रारूप खराब हो गया था. वह चिढ़ कर बोला, ” सरजी ! यह क्या किया ? बड़ी मेहनत से प्रारूप बनाया था. वह बिगाड़ दिया.”
” तो क्या हुआ ?” देवीलालजी ने कहा, ” चिंता क्यों करते हो सर जी ? मुझे कागज दीजिए. मैं अभी बना देता हूं,” कहते हुए उन्हों ने कागज लिया. एक बार प्रारूप बनाया. उस में जाति का कालम छोड़ दिया. दूसरा कागज लिया. प्रारूप बनाया. उस में कक्षा का कालम छोड़ दिया. तीसरी बार कागज लिया. उस में छात्र का कालम बनाया मगर, छात्रा का कालम छोड़ दिया.
आखिर मित्र परेशान हो गया था. उसे जानकारी आज ही भेजना थी. उस ने मन ही मन खींजते हुए कहा, ” सर ! आप रहने दीजिए. आप कक्षा में जाइए. मैं प्रारूप में जानकारी भर कर भेज दूंगा.”
यह सुन कर देवीलालजी मुस्करा कर कक्षा में चले गए. एक दिन कैसे चला गया, पता ही नहीं चला.
दूसरे दिन मित्र सीधा कक्षा में गया. देखा देवीलालजी कक्षा में सोए हुए थे. छात्र अपनीअपनी गाइड से लिख रहे थे. यह देख कर मित्र हैरान था. वह झट से देवीलालजी के पास गया. टेबल पर डंडे ठोका,” सर ! नींद निकाल रहे हैं?”
वे झट से उठ बैठे,” अरे नहीं सर! माथा दुख रहा था इसलिए आंख बंद कर के बैठा हुआ था.”
” लेकिन यह स्कूल है. बच्चे गाइड से लिख रहे हैं. आप सो रहे है. यह गलत बात है. इन्हें बोर्ड पर लिखवाया कीजिए.”
” जी सर, ” देवीलालजी ने कहा, ” ऐ लड़के ! चाक लाना.” कह कर वे सीधे खड़े हो गए. एक लड़का भाग कर गया. चाक ले आया. मित्र आश्वस्त हो कर चले गए.
” चलो ! देवीलालजी उन के आदेश का पालन कर रहे होंगे,” यह सोच कर वे कार्यालय का काम करने लगे. तभी उन के मन में विचार आया. एक बार चल कर देख लेना चाहिए. वे वापस आया. देखा. देवीलालजी सो रहे थे. एक छात्र गाइड से बोर्ड पर चाक से उतार रहा था. बाकी के छात्र लिख रहे थे.
” सर! ये क्या है?” मित्र ने कक्षा में प्रवेश करते ही देवीलालजी को उठाया, ” यह क्या हो रहा है ?”
” सर! बालकेंद्रित गतिविधि से प्रश्नोंत्तर लिखवा रहा हूं.” कहने के साथ देवीलालजी खड़े हो गए.
उन का कहना सही था. वाकई बालकेंद्रित गतिविधि से कार्य हो रहा था. एक छात्र लिख रहा था. दूसरे बोर्ड से नकल उतार रहे थे. यह बात दूसरी है कि एक छात्र गाइड से लिख रहा था. बाकी सभी नकल कर रहे थे.
यह देख कर मित्र ने अपना सिर पीट लिया. वह सोचने लगा कि वाकई चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता है. यह बात सही साबित हो रही थी. उस ने चाहा था कि वह देवीलालजी को सुधार कर उन से सही काम लेने लग जाए. ताकि वह शर्त जीत जाए.
मगर, मित्र के सभी उपाय फेल हो रहे थे. वह जो भी कोशिश करता, वह फेल हो जाती. देवीलालजी कोई न कोई उपाय निकाल लेते. इसलिए थकहार कर मित्र ने उन्हें छात्रवृत्ति का कार्य दे दिया. यह आनलाइन छात्रवृत्त्ति का कार्य था. सभी की छात्रवृत्ति आनलाइन चढ़ाना थी. इस के लिए एक आनलाइन सेंटर पर उन की मुलाकात करवा दी थी.
” सर ! आप को यहा पर काम करवाना है.”
” जी सर! आप निश्चिंत रहे. आप का सभी काम हो जाएगा.” देवीलालजी ने कहा और अपना काम पूरी ईमानदारी से करने लगे. उन की मेहनत रंग ला रही थी. मित्र को लगा कि पहली बार उन्हों ने देवलीलालजी को सही काम दिया है. इसलिए उस ने अपने मित्र को फोन किया, ” भाई रोहन! मैं जीत गया. मैं ने देवीलालजी जैसे चिकने घड़े पर ईमानदारी का पानी ठहरा दिया है. आजकल वे पूरी ईमानदारी से छात्रवृत्ति का कार्य कर रहे हैं. सभी आंकड़ें मिलाते हैं. आनलाइन वाले के यहां जाते हैं पूरा काम कर के आ जाते हैं.”
यह सुन कर मित्र रोहन चौंका, ” नहीं यार! यह हो नहीं सकता. जिस व्यक्ति को मैं पांच साल में सुधार नहीं सका. उसे तूने आठ महिने में सुधार दिया ?”
” हां भाई हां, ” मित्र ने कहा, ” मैं शर्त जीत गया हूं.”
” वाकई! तब तो तेरी मिठाई पक्की रही, ” कहते हुए रोहन ने फोन काट दिया. फिर निर्धारित दिन को दोनोें मित्र नीमच में मिले. शर्त के मुताबित रोहन को उसे अच्छी होटल में पार्टी देना था. वह उसी में आए थे.
तभी वरिष्ठ कार्यालय से फोन आया. जिसे सुन कर मित्र के होश उड़ गए.
मित्र का चेहरा देख कर रोहन ने पूछा, ” मित्र क्या हुआ? तेरे चेहरे का रंग क्यों उड़ गया.”
” पार्टी कैंसल!” रोहन ने कहा,” मित्र! तू सही कहता था चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता है.” कहते हुए मित्र ने देवीलालजी को फोन लगाया, ” सर! आप छात्रवृत्ति के तमाम कागज भेज दीजिए. उन्हें आज ही सुधार कर आनलाइन चढ़ाना है.”
” जी! आप अगली बस संहाल लीजिएगा,” कहते हुए मित्र ने फोन रख दिया ओर माथा पकड़ कर बैठ गया, ”अरे यार! तीन घंटे में 200 छात्रों के खाते सही करना है. यह संभव नहीं है.”
इस पर रोहन ने कहा, ” हां, यह सही कहा. मगर, घबराने से काम चलने वाला नहीं है.” रोहन ने कुछ सोचते हुए कहा, ” ऐसा करते हैं कि हम आठदस आनलाइन वाले के यहां चलते हैं. उन्हें इस लिस्ट के 20—20 छात्रों की सूची देते हैं. वे उसे आनलाइन चढ़ा देंगें.” कहते हुए रोहन ने मोटरसाइकल उठाई. आठदस आनलाइन वालों से संपर्क किया. उन्हें कागज दिए. छात्रवृत्ति के खाते सही करने का बोल दिया.
यह देख कर मित्र ने कान पकड़ लिए, ” आज के बाद में उस देवाबा से कभी काम नहीं करवाऊँगा.”
” यही तो वह चाहता है,” रोहन ने कहा, ” उस का सिद्धांत ही यही है बनो रहो पगला, काम करेगा अगला.” कहते हुए रोहन मुस्करा दिया.
जैसे वह कह रहा हो मित्र — चिकने घड़े पर कोई पानी नहीं ठहरता है. तुम तो उस पर ईमानदारी का पानी ठहराने वाले थे. क्या हुआ ? हार गए ना? मगर बोला कुछ नहीं.
© श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
11-11–2020
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