श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना जागृति विचारों से। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 219 ☆ जागृति विचारों से

आपसी मेलमिलाप ही हर त्योहारों का मुख्य उद्देश्य होता है । सब कुछ भूलकर नए सिरे से जीवन जीने की कोशिश करना है तो पंच दिवस के शुभ अवसर पर देरी न करें परन्तु इतना अवश्य है कि जब तक मन में क्षमा का भाव न हो तब तक आप किसी के साथ भले ही स्नेह पूर्ण व्यवहार करें पर वो समय मिलते ही फिर गलती करेगा क्योंकि उसे पता है दीपावली पर माफी मिली अब जी भर गलती करो होली पर फिर अभयदान मिलेगा ।

एक तरफा व्यवहार ज्यादा दिनों तक नहीं चलता है । फिर भी कोशिश करते रहें, परिणाम शुभ होंगे । हमारे त्योहारों की यही विशेषता है कि ये श्रद्धा,विश्वास,आस्था व सोलह संस्कारों को जागृत करते हैं …।

नेक कर्म नेक राह, एकता की होय चाह
खुशियों की डोर बना, मेलजोल कीजिए।

जन -जन मिलकर, साथ- साथ चलकर
जागरण समाज में, प्रण यही लीजिए ।।

मोतियों का बना हार, जिसमें हो सोना तार
गले में सोहेगा तभी, खूब दान दीजिए ।

सबको ही साथ लिए, पास जो भी रहा दिए
जीवन जरूरी सदा, शुद्ध जल पीजिए ।।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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