प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “अचानक मिल जाती जब कभी मन की खुशी…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 201 ☆ अचानक मिल जाती जब कभी मन की खुशी ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 अचानक मिल जाती जब कोई मन चाही खुशी

दिखने लगती सामने दुनियां जो थी मन में बसी।

खुलने लगती खिडकिया, दिखने लगता वह गगन

 *

उमगने लगती नई संभावनाएं निखरता संसार है

लेने लगते स्वप्न सुंदर नए कई आकार भी

 दूर हो जाता अँधेरा छिटक जाती चाँदनी-

 *

स्वतः सज जाता है मन में प्रेम का दरबार है

मधु गमक से आप भर जाता है सब वातावरण

कामनायें नाच-गाकर करती है नव सुख सृजन

 *

 गुनगुनाती भावनायें अधरों में मुस्कान ले

भावनायें भाग्य का करती सहज वन्दन नमन

खुशी तो खुशी का वरदान प्रकृत स्वभाव है

 *

 खुला है व्यवहार उसका कहीं नहीं दुराव है

इसी से सबको है प्यारी कल्पना मनभावनी

सद‌भाव से करता है मन हर दिन ही जिसकी आरती

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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