प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित – “अचानक मिल जाती जब कभी मन की खुशी…” । हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।)
☆ काव्य धारा # 201 ☆ अचानक मिल जाती जब कभी मन की खुशी… ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
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अचानक मिल जाती जब कोई मन चाही खुशी
दिखने लगती सामने दुनियां जो थी मन में बसी।
खुलने लगती खिडकिया, दिखने लगता वह गगन
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उमगने लगती नई संभावनाएं निखरता संसार है
लेने लगते स्वप्न सुंदर नए कई आकार भी
दूर हो जाता अँधेरा छिटक जाती चाँदनी-
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स्वतः सज जाता है मन में प्रेम का दरबार है
मधु गमक से आप भर जाता है सब वातावरण
कामनायें नाच-गाकर करती है नव सुख सृजन
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गुनगुनाती भावनायें अधरों में मुस्कान ले
भावनायें भाग्य का करती सहज वन्दन नमन
खुशी तो खुशी का वरदान प्रकृत स्वभाव है
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खुला है व्यवहार उसका कहीं नहीं दुराव है
इसी से सबको है प्यारी कल्पना मनभावनी
सदभाव से करता है मन हर दिन ही जिसकी आरती
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© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈