श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-२  ☆ श्री सुरेश पटवा ?

हम हम्पी जा रहे हैं तो इसकी थोड़ी जानकारी लेना आवश्यक है। हम्पी कर्नाटक के बेल्लारी ज़िले में स्थित है। जो  कर्नाटक राज्य के कई प्रमुख जगहों जैसे बंगलुरू, हुबली, हॉस्पेट, बेलारी, रायचूर आदि से राष्ट्रीय राजमार्ग 63 द्वारा जुड़ा हुआ है। यह जगह बंगलुरू से 380 किलोमीटर और हुबली से 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हम्पी रेल मार्ग द्वारा कई प्रमुख शहरों जैसे बंगलुरू, हुबली, बेलगम, गोवा, तिरुपति, विजयवाड़ा, गंटूर, गंटकल, हैदराबाद और मिराज आदि से जुड़ा हुआ है। तुंगभद्रा नदी के किनारे रामायण कालीन हनुमान जी की जन्मस्थली की पहचान किष्किधा के रूप में की गई है।

हम भोपाल से हवाई उड़ान द्वारा मुंबई होते हुए हुबली पहुँचेंगे। हुबली से बस द्वारा हम्पी यात्रा होगी। हमने 28 सितंबर 2023 को वायुयान ने भोपाल हवाई पट्टी से से उड़ान भरी। यदि आप भोपाल से मुंबई की यात्रा रेल द्वारा कर रहे होते तो आपको सतपुड़ा और विंध्याचल पर्वत श्रेणियों के मध्य से प्रवाहित होती नर्मदा और ताप्ती नदियों को पार करके पुराने खानदेश इलाक़े से गुजरना पड़ता।  वायुयान में भी रास्ता तो वही है परंतु यह इलाक़ा आसमान में उड़कर पार करना था। शुरू में विमान कम ऊँचाई पर होने से नीचे जाने पहचाने स्थान चिन्हित करते रहे कि नर्मदा नदी प्रवाहित है। आगे गोदावरी नदी चौड़े पाठ के साथ प्रवाहित होते दिखी। गोदावरी नदी को “दक्षिण गंगा” के रूप में भी जाना जाता है। यह नदी महाराष्ट्र में नासिक के पास त्र्यंबकेश्वर से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले लगभग 1465 किमी. की दूरी तय करती है। यह महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा राज्यों से होकर बहती है। गोदावरी नदी के तट पर नासिक, नांदेड़ और भद्राचलम महत्वपूर्ण शहर हैं। ऋषि गौतम से संबंध जुड़े जाने के कारण इसे गौतमी के नाम से भी जाना जाता हैं। वहीं से पश्चिमी घाट की पर्वत श्रेणी भी नज़र आई। जब विमान मुंबई विमानतल पर उतरने लगा तब कल्याण क्रीक का समुद्री विस्तार दिखा। लगा विमान समुद्र पर ही उतर रहा है। अचानक उड़ान पट्टी नज़र आई और हम एक हल्के झटके के साथ आसमान से ज़मीन पर थे। 

दस बजे मुंबई हवाई अड्डे पर उतरे। हमारा लगेज हमको सीधा हुबली में मिलेगा। हम लोग हैंडबैग लेकर मस्तानी चाल से सुस्ताने की जगह ढूँढने लगे। हवाई यात्रा में सवारी अधिक थकान महसूस करती हैं, क्योंकि वे गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के विपरीत कम आक्सीजन के साथ जड़ से कटे खुले आसमान में रहते हैं। हुबली उड़ान चेक इन दोपहर अढ़ाई बजे शुरू होगी। समूह ने प्रतीक्षा लाउँज में ठीक सी जगह देखकर अड्डा जमाया। घर से साथ लाया ख़ाना सभी साथियों ने मिलबाँट कर खाया। इसके बाद अच्छी चाय मिल गई। फिर कुछ ने बारी-बारी से आराम कुर्सी पर एक लेट लगाई। कुछ ने झपकी को थपकी देकर दुलार किया। कुछ मोबाइल में घुस मोबाइल रहे। कुछ मोबाइल होकर आसपास के नज़ारों से आँखें सेंकते रहे। इस तरह सभी काम से लगे रहे। ख़ाली कोई नहीं बैठा। ‘कर्मप्रधान विश्व करी राखा’ अनुसार प्रत्येक जीव कर्मरत रहा। 

सूचना पटल ने बताया कि मुंबई से हुबली उड़ान दो बजकर पचास मिनट पर उड़ेगी। जिसकी बोर्डिंग एक बजकर तीस मिनट से होनी है। हम लोग डेढ़ बजे सुरक्षा जाँच करवा कर इंतज़ार लॉबी में पहुँचे। वहाँ गज़ब की बदइन्तज़ामी थी। हमारा बोर्डिंग गेट 11 प्रदर्शित हो रहा था। 11 से 20 गेट की इंतज़ार लॉबी में क़रीबन 150-200 सवारियों के लिए मुश्किल से 60-70 कुर्सियाँ थीं। लोग कुर्सियों की घात लगाए यहाँ-वहाँ घूम रहे थे। कुर्सी ख़ाली होते ही लपक लेते थे। कुछ लोग बाजू की कुर्सियों पर बैग रखकर बैठे थे। उन्हें हटवाने में खड़े लोगों की कुर्सियों पर जमी सवारियों से झंझट हो रही थी। एकमात्र पुरुष बाथरूम मरम्मत हेतु बंद था। महिला प्रसाधन चालू था। वैकल्पिक बाथरूम बहुत दूर गेट नंबर एक के पास बताया जा रहा था। हमने वरिष्ठ नागरिक का तुरुप पत्ता चला तो वहाँ के स्टाफ़ ने एक गुप्त बाथरूम की तरफ़ इशारा करते हुए हमारी समस्या का निदान कर दिया। हमारी समस्या का निदान होने भर की देर थी। फिर तो सभी साथियों ने उसका उपयोग किया। बोर्डिंग शुरू हुई तो सवारियों को गेट से हवाई जहाज तक ढोने वाली बस नहीं आ रही थी। यात्रियों द्वारा शिकायती रुख़ अख़्तियार करने पर बस का आना आरम्भ हुआ। हम लोग हवाई जहाज़ में लदकर रवाना हुए।

मुंबई से हमारी यात्रा वेस्टर्न घाट से होकर दक्षिण प्रायःद्वीप याने पेनिनसुला पर होनी थी। दक्षिण भारत एक विशाल उल्टे त्रिकोण के आकार का प्रायःद्वीप (Peninsula) है, जो पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और उत्तर में विंध्य और सतपुड़ा पर्वतमालाओं से घिरा है जबकि त्रिकोण के कोने पर दक्षिण में अथाह हिन्द महासागर लहराता है, जहां श्रीलंका मुख्य भारतीय प्रायःद्वीप से टपक कर लटका हुआ सा प्रतीत होता है। जहाज ने रनवे पर पहुँच जगह बनाई। पायलट के कुछ बुदबुदाने के साथ गतिमान जहाज झटके से उठा और हवा में तैरने लगा। बाहर के नजारे दिखने लगे। 

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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